भारतीय जैन - साहित्य - संसद भाग - 1 | Bharatiya Jain - Sahitya - Sansad Bhag - 1

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Bharatiya Jain - Sahitya - Sansad Bhag - 1  by कैलाशचन्द्र शास्त्री - Kelashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बध्यंकीय मामेशा १६५४ प्रकाशित होनी चाहिये । व्रिविषं विषयो पर गह्‌ -थ-समसि किते प्रकोर विमतः हुई हैं और किस प्रकार क्रमपा सिन्त जिन्न काल-लण्डो मे गन्णो का मिर्माश हुआ है यह जानना प्राश्य ह । ‰ संस्कत प्राकृतं भश श्रौर हिन्दी के उपयोगी एथ ह्यपः कोथ्यो का हक वितरण प्रकाशित करने की परम आवश्यकता हैं ५ पर जिज्ञासु विंद्ांचू शोध-कोर्य कर सर} ६. प्रत्येक छह महीने पर साहित्य दशन कला राजनीति भर्थशांस्त्र प्रसूर्सि विषै चे सभ्तद्ध कुछ ऐसे शीर्षक प्रकाशित करन की झावश्यकता है. जिन पर शोध भौर भरने ऋं पमं किया जा सके । भारत मे सशोधन काय कई एक महाविद्यालयों विश्व्विद्यालयों श्रौर \ संकोकमि- संस्थाश्षो में हो रह है । परन्तु उसका विहंगम हृष्टि से श्रवलोकन करते में कवित क जिनको दूर करना संशाधन-काय की प्रगति के लिए झत्य त लाभदायक होगा । ४ ७ प्रभेयतरमलमातण्ड श्रष्टसहज्ञी न्यायकुमुदल दर और घ्रनकान्तजयपताका जतै महीश दाशनिक ग्रंथा की हिंदा टीकाएँ प्रकाशित करने का झावश्यकंता है । त्श के नवनिर्माग श्र चारिशिक विकास के लिये भ्राधुनिक भारतीय भाषाशों में जैन कथाशो के सार का नेकर झ्रहिमा सत्य सयम श्रौर प्याग के सिद्धान्त का निरूपण होमे की भावश्यकता > । श्रत उपयास काव्य कथा कहानियां प्रादि नवीन सलौ मे लिखा जानौ च॑द्यि। ९ राम कष्ण हनुमान श्रादि भारताय धर्मं-नेताभ्रो के चरित जैन हृष्टि से हिंदा एवं अग जी मे प्रकाशित होने का झावश्यकंता है । 9 जनात्ति भथशास्न मुद्राशास्र प्रभृति लाकोपयागी जनयथो का समिर परि चथा मक पुस्तिका के प्रकाशित हान की महती भ्रावश्यकता है जिस भ्र बेषगा करने वाल सिद्वाना को उक्त विषय के जन गथो से सहायता प्राप्त हो सके । जिसासु निष्पक्ष हाने पर भी प्रन्थोके जात न हानं से यथार्थ स्थिति से परिचित रह जाता है । ११ मेरा यह विश्वास है कि विहार का प्रामाणिक इतिहास जन साहिय के सम्पक अध्ययन के बिना अपूण है । श्रत ससद के सदस्य जन वाइमय से विहार सम्बन्धी ऐतिहासिक तथ्यों के साथ विहार के प्राचीन प्राम भर उनकी श्राधिक सामाजिक एवं सास्कृतिक स्थिति के सम्बन्ध में म दभ सहित तथ्य प्रस्तुत कर सकें तो विहार राज्य के इतिहास के लियं बहुमू य सामग्री उपलब्ध हो जायगी । इसी प्रकार महाराष्ट्र गुजरात दक्षिण भारत एवं राजस्थान के सम्बन्ध में भी प्रामाणिकं तथ्य जैन साहित्य से सकलित किये जा सकते है । मैंने एक सक्षिप्त रूपरेखा श्राप के सामने उपस्थित करने का प्रयास किया दै! वाडमय भरखण्ड श्रौर श्रदैत होता है । उसके साम्प्रदायिक भेद नहीं किये जा सकते । यहाँ जैन साहित्य कटने का मेरा आशय इतना ही है कि जो वारमय जनधर्मं के उभासकं कविर्यो प्राचार्य शरोर लेखकों द्वारा प्रसूत हुमा है वह जन साहित्य है। बस्तुत यह साहिध्य सौन्दय लालसा की प्रति एवं मानवता के निर्माण प्रथ में बाल्मीकि व्यास कालिदास दांकर्सचार्म आदि विद्वानों के साहित्य के समान हीं उपयोगी है । मैंने आपका बहुत समय लिया । मैं श्रापको एवं ससद्‌ के सदस्यों के लिये धन्यवाद देता ह जिन्होंने मुक्ते यह घवसरे प्रदान्‌ किया ¦ ह्ाम-देवता सी जय । सर्वे सुखिनः भवन्तु । ६ सनशरी १६६५




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