आप्त - परीक्षा का भावानुवाद | Aapt Pariksha Ka Bhavanuvad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आप्-परात्ता ।
रा
कटे; चर.
भेदने का अभाव बेज्ञेषिक कसे कर सकते हैं । अथवा
थाड़ी देर के लिये इश्वर का कत्तां मान भी लिया जाय,
ता भी यह प्रश्न उपास्थित हुए बिना नहीं रह सकता कि-
प्रणेता-मोक्षमागस्य, नाशरीरोन्यमुक्तबत् ।
सदरीरस्तु नाइकमो, संभवदयज्ञ जतुवत ॥ ११ ॥
वह मोझ-पाग का उपदेशक इश्वर शरीर-रहित है या
शरीर सदित । यदि शरीर- रहित हे, तो भी अन्यमुक्तात्मा ओऑं
की तरह मोप्तमाग का उपदेशक नहीं दो सकता, क्यों कि
जसे इंश्वर शरीररहित है, वेसे ही अन्यमुक्तजीव भी
बारीर रहित हैं, “फिर इंश्वर ही मोक्ष का उपाय बतल।
सकता हे, झन्यमुक्त जीव नहीं बतला सकते-” इस बात
के मानने के लिये सिवाय आपके ओर कोई तेयार नहीं
हो सकता । ओर यदि इश्वर शरीर-सहित है, तो साधा-
रण शरीर-धारी अज्ञानी जीवों की तरह कमे-रहित नहीं
होसकता । ( वेशेषिक ) मोक्ष का उपाय बतलाने के लिये
इश्वर को न शरीर सहित होने की ज़रूरत है, और न
शरीर रदित होने की झावध्यकता है, किन्तु प्रत्येक काये
करने के लिये ज्ञान, इच्छा, झर प्रयत्न की जरूरत है,
ये तीनों शक्ति यां उसमें हैं ही, इसालि ये इश्वर को
उपदेशक मानने में कोई बाधा नहीं आ सकती । (जैन )
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