स्वतंत्रता का जन्म | Swatantrata Ka Janm

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Swatantrata Ka Janm by श्री हृदयनाथ मोटा - Shri Hridaynath Mota

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वतंत्रता फा जन्म ञः तिस्णा भंडा था, जो गौरव के साथ सभी जगह जहर रहा था। यह राष्ट्रीय ध्वज उन सभी ऐतिहासिक स्थानों घर शान के साथ लहरा रहा था, जो पिछली दो शताब्दियों से विदेशी साम्नाज्यवाद के चिह्न रदे है । यह्‌ राष्ट्रीय ध्वज बड़े छत्सव, उत्साह रौर उल्लास फे साथ नई दिल्‍ली के सरकारी अंवन पर, बाइसराय के निवास-स्थान पर, बादशाह शाइजहान फे ऐतिहासिक लाल किले पर--जो आजाद्‌ दिए फोज के सैनिकों के मुक्हमे के बाद से और थी शाधिक महत्त्व-पूर्ण हो गया है, भाँपी के किले पर--जहाँ वीर रानी लक्ष्मीभाई ने सन्‌ १८५७ में विद्रोह के कड़े को ऊँचा किया था, अहमद नगर-क्रिहे पर--जहाँ रा्ट्र के महान नेतागण लगभग सीन च्षे लक निटिश सरकार के बंदी रदे, 'ोर सभी अन्य महत्त्वनपू्ण स्थानों तथा भवनों पर लहरा रहा था। प्रत्येक सकाल श्ॉर भोपड़ी, प्रस्येक इमारत आर सवन; प्रत्येक गाड़ी और सवारी, प्रत्येक दुकान श्रौर सड़क सुदूर राष्ट्रीय ध्यज सै सुसल्लित थी । शौर, राष्ट्र के प्र्येक नरनतारी ने इस मंडे के सम्मुख खस दिन गौरव, पदर भौर श्रद्धा तथा प्यार से पना मस्तक श्ुकाया । वस्तुतः यद्‌ ध्वज इस सम्मान का पात्र भी &ै। मिर््सदेह दम भारतीय रवतंघ्रता-माधि की असननता से अर्यंतर अधिक प्रभावित हुए; और हमने अपनी प्रसन्नता का प्रदशंन एक शाद्यना तरीके पर किया मी । किंतु उत्सव, उत्साह और उडासें के इन प्रदू्शनों के सिवा थी इस भारतीयों के लिये १४-१४




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