गौरमोहन | Gauramohan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नौरमाहन । ७
शिष्टता के अनुकूल होगा या नहीं, यह सोच कर खड़ा हो रहा ।
गाड रवाना होत समय बटी चै सिर शुका कर विनय को
अभिवादन क्रिया । विनय हतबुद्धि सा खड़ा था, इसलिए
प्रयभिवादन न कर सका । घर आकर वह इसको अपनी भूल
समभ बार बार अपने की धिक्ार देने लगा । इसके साय साथ
विनयन भेट होने से बिदा होन तक कं श्रपने समस्त चरण
का जब श्रालोचना करके दखा तब उसने आदि से अन्त तक
अपना सारा व्यवहार श्रसभ्यता मे भरा पाया । किस
समय में क्या करना उचित था, क्या बोलना उचित था, इन
वातां को लेकर बह मनी मन भूठ मूठ का तक्र वितक करने
लगा। घरक भीतर प्रवेश करक उमन दगा, जिस सुमाल
से बालिका ने अपने बाप का मुँह पोंछा था वह रुमाल
बिछौने पर पड़ा है । उसन भट उसे उठा लिया । उसके मन
मं बैरागी के स्वर मे वह गीत गूँजने लगा--
इखो, एक श्रनाखा पक्षी अर शा कर उड़ जाता है ।
देस्वते ही दग्वते दस बजनें को हुए । वर्षा की धूप कड़ी
हों उठी ।. गाड़ियों का खत्रोत बड़ वेग से ऑफिस की अर
दौड़ चला । विनय का उस दिन किसी काम में जी न
लगा । उसे श्रपना छोटा सा घर श्नौर चारों नार कलकत्ते कं
बुर महल्लं मायामहल कौ भाति प्रतीत होने लगे । इस वषा-
ऋतु क प्रभातकालिक सूयं की निर्मल प्रभा उसंक मस्तिष्क
मे प्रवेश कर गई; वह उसके लद के भीतर प्रवाहित होने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...