नेपाली और हिन्दी भक्ति - काव्य का तुलनात्मक अध्ययन | Nepali Aur Hindi Ke Bhakti Kavy Ka Tulanatamak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय एक
नेपाली श्रौर हिन्दी के
पारस्परिक सम्बन्ध-स्रोत
हेलम्बु (हरम्व) की जननी पांवती की श्रीडा भूमि हिमाचल के श्रचल
स्थित लावत नेपाल म साहित्य सजन की दृष्टि से भारतीय श्राय भाषाओं
मं से नेपाली से भी हिंदी वा प्रथम प्रचार इस बात वा प्रत्यस प्रमाण है वि
प्राचीन समय से नेपाल श्रौर मारत बै विशेषत उस प्रदेश के बीच, जिसे इस
समय हिंदी क्षेत्र कहा जाता है. घनिप्ठ सम्ब व चला झा रहा है। इस सम्बध
वे कई खोत हैं जिनमे से कुछ प्रमुख साता का सीचे विवेचन किया जाता है--
(१) सास्कृतिक श्रादान प्रदात
वतमान नेपाल का पूव रूप घटता बढता रहा है । प्राचीन नपाल पहाडा
से घिरी घाटी त्तत सीमित था । इसका नपाल नाम निः या निमि दारा पालितं
होने के कारण हो श्रयवा नय श्रर्यात् नीति पालने के कारण ।” यह सही है वि.
यह नाम बडा प्राचीन है । चाणक्य के भ्रयगास्वश्रौर राजतरगिणी म नेपा
माम प्राया है।२ सथुद्रगुप्त की ३८७ ४३२ विक्मीय दिग्विजय सूचक
इलाहाबाद कै श्रशोकस्तम्मस्य हरिपेण कै त्वम नेपाल वा नाम श्राया है। डे
विततु इसकी गणना भारतवप या मरतखण्ड के झन्तगत ही रही । श्राज भी
१ द्रष्टव्य--धम् एव सस्कृति मुरलीधर भटटराय, पृ० १७
२ (क) प्रयशास्तर कोौरित्य मधिकरण २१श्रु० ११, पर ८०
श्रष्टप्लोति सघात्या ष्णा भिडि गसी वपवारणमपसारक इति नपालक्म ॥
(ख) राजतरग्रिणी कत्हण--चलुय तरग, श्लोक ५३१ ।
तमच्छदमि सघातु चिद्या विक्रम-सयुत ! भायाव्यरमुडिर्नाम राजा
चेपालपालव
३ समत्तरङ्वाक कामरूप नेपाल कत्पुरादि प्रत्यत नृषतिभि । »-
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