पहाड़ बूढ़े नहीं होते | Pahad Budhe Nahin Hote

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संगतराश को पहले गुजरनर होता है एक प्रनगद स्यूल पत्थर के भीतर से | पत्थर के श्रनावश्यक विस्तार को बह भ्पनी टॉँकी से दुरकर उने मूर्त रूप देता हैं । हर रेखा इतनी जीवन्त कि लगता है कलाकार ने पापाण में भी प्रात फूंक दिये हैं, जीवस्त; ऐसे प्रस्तर खडों के समझ ही तो मानव को नतमस्तक होना पड़ता है 1 इस तरह कलाकार जीवन को एक नई सूक्त देते हुए भविस्मरणीय बना जाते हैं 1 मेरा मानना है कि पाठकों, दर्शकों भौर श्रोताग्रों के हुदय मे भी एक कलाकार सोपा रहता है इसीलिए तो वे कला के प्रदर्शन में हिस्सा लेते हैं प्ौर कलाकार की धनुभूति मे सहमागी होते हुए ध्यपित्त भ्रौर ह्पित होते रहते हैं । इस प्रकार, वे भी जीवन के भ्राद्ाद को परिष्कृत कर भारमलीन होने की विद्या सीख रहे होते हैं। पहाड़ बूढ़े नहीं होते / 7




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