मंजु | Manju
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
984 KB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनु ९६
विचार जान लो ।
गया मततब हे
हो सबता हैं वह तुम्हारे साय चादी न वरे । यह में जानना हूँ
बढ़ तुम्ह प्यार नहीं कर सकती । उसकी वाणी म दत्ता थी । चेहरे के
भाव यथावन् गभीर >!
कख क्षण वे टिषएु कमरेम नन्ति दा 1 विमल मनु के चिन
का दंखते ही गम्भीर हो गया था । यह तथ्य बिहारी से दिपा न था । वात
की बातचीत ने सारे वातावरण का गम्भीर बना टिया 1
मजु के पिपय मे मादूम हाता है तुम बटूत जानते हू ।
मेरी उसमे दिलचस्पी है 1
तुम इर साथ नाती कर मङेगौ ८
यह मैं नहीं कह सकता। हम एक टूसर को प्रेम जरूर करत हैं ।
लुम श्रपनी माग जारो रख कर उस वटनास न बरी इसीलिय मैंने बुआ
द्िगारा नहीं ।
तुम्हें मजु प्यार करनी है ?
“नम्र ॥
सिवाय तुम्हारे ब्रौर कसा से नाता नहा करगौ ?
मेरा यहां विश्वास है । मजवूरन गर उसे किसी श्रौर से शादी
बरनी भी पड़ी तो भी वह उसकी नही हो सबती ।
एवं “न पर मैं अपनी पसंद वार्षिस जे सकता हूँ विमत 1
मैं उसे पूरा करन की काटिरा वस् गा ।
में सिफ पानना चाहता हूँ कि तुम्हार मुवावने मे बह मरा शा
सकेगी या नहीं । इसके दिये किसी बहान से वह हम लाना व अपने यहा
युराय। कायत्रमं वं वीचमे मैं वहा से वापिस घर आने का यटाना
करूगा। तुम्हें भी मर साथ ही एक वार उठ लाना होगा । मुझ इजाजत
दर गर झाग्रहपूवक उसने तुम्ह रोक लिया तो में समझा कि बढ़
नुम्टारी है । पिताजा को मरा झासिरी निशय देन मे अभी पाय शित बाकों
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