किरण की ओर | Kiran Ki Or

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Kiran Ki Or by मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ न पैवतीमृन एक धूर मारकर माल्मेन को दूसरी दुनिया में पढुंचा सकता था, मगर यह बात उसके दिमाग़ में ही ब नहीं प्राई। यह तो उसे तभी मूषी, जव वह्‌ पद मौत ' के शिनारे जा पहुंचा था। चास्तीगुल ने हातथा से कहा कि वह्‌ पो मे पुण्ड प्र ॥ ह मु मेर रे प्रौर पद पोट दौड़ाता श्ौर भाई को पुकारता पा स्तेपो फौ भोर चला गया। उसने इदेंगिद के टीलो प्रर मानों फा भक्फर लगाया , भेंड़ो को घेर लाया , मगर गुवह होने तक तेपतीगुल फो नही योज पाया । प्रायिर जव वह्‌ पिना प्रौर उगने उसे घोड़े पर चढ़ाया श्रौर षने तन फी पोट, कर उ भाधी-पानी से बचाया, तो तेवतीगुल न सिन्ध था, ने पुर्दा | हातगा पोड़ी को पध में ने रख पाई। सूफान ने पोषं दो ऐसे दियरा दिया मानों दे भेडें हो। प्रौर जैगे ही भाई गांव में दिगाई दिये, बसे हो उन दोनों फो सालिय थी बड़ी रञा षा मा कथना षडा) छोटा भाई बेहोग पा, मरसाम षौ हालत में यइयड़ा रहा था भौर ऐसी दशा में हो उसी सूद पिटाई पो गई। बड़ा भाई उमगौ रणा गृह कर धाया। जो तु भी हाथ भे था गया, उसो में भाइयों की दिटाई कौ दरं, दियता पर निष्टुग्ना थे, माना मे भुइपोर हो । षग गन्‌ प याद शाई सान्पेन थे यहा मे षदप ये करता दे प्रम दयो रलम जम्तृरी तेकर पटन्‌ ग पन्वस्रं क प्र भाप म्द पौर उन्होंने मॉन्दाय थे के दमा




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