परिपक्व मानस | Paripakva Manas

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Paripakva Manas by एच॰ एन॰ ओवरस्ट्रीट - H. N. Ovarastrit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साघारण नहीं था । यह्‌ एक मौलि प्रयोग था जिससे एक नया ज्ञान पैदा हुआ कि हम जैसे हैं बेसा कौन हमें बनाता है श्रौर किस तरह हमें सबधा भिन्न प्राणी बनाया जा सक्ता है | कुना, मांस व घंटी के प्रयोग काफी प्रसिद्ध हैं और उनके दुबारा वर्णन करने की झावश्यकता नहीं । श्रसली बात पावलोव की इस खोज में हे कि किस प्रकार हमारे प्राकृतिक गठन में कृत्रिम उत्तेजना का समावेश किया जा सकता है । मांस लाये जाने पर कुत्ते के मुँह से लार ट्पकना “स्वाभाविक' है किन्तु कोई मी पहले से ठेसा नहीं सममेगा किं घंटी नेजने पर कुत्ते कै मुह मे लार श्रानी चाहिए । सन्तु माप्त श्रनि पर हर बार घंटी बजेवाकर पावलोव ने कुत्ते के स्वभाव को इस प्रकार श्रमिसन्धित कर दिया कि कृते के मुँह में लार मांस के बिना भी केवल धण्टी बजने पर ही श्राने लगी । इस परीक्षण तथा इसके बाद के अन्य परीक्षणों ने हमारी शताब्दी की विचारघारा में ्रमिस्तन्धित प्रतित्ेप को जन्म दिया; और यह एक प्रमुख विचार है जिससे परिपक्कता-वित्ति का निर्माण करने मे घदहायता मिल सकती है । इससे हमे इस बात का पता चलता है फि कुत के स्वभाव की तरह मनुष्य का स्वमाव स्थिर तथा न बदला जा सकने वाला नहीं है। मनुष्य को श्रसंख्य तरीकों से ऐसा श्रमिसन्धित किया जा सकता हे जेता फि वह श्रपनी मूल प्रकृति से नहीं है । इम मनुष्य को एक वायुयान नहीं बना सकते, किन्तु दम उसे वायुयान-नि्माता बना सकते है; हम उसे एक झरुबम नहीं बना सकते, किन्तु हम उसे एक ऐसा प्राणी बना सकते हैं जो श्ररुदम के बनाने तथा उसके प्रयोग की श्नावश्यक्रता को श्रनुभव करता है । हमारे मानवीय स्वभाव की सीमाश्रों के मीतर च्रसीम सम्भावना भरी पड़ी हैं । इमने प्रथ्वी पर श्रपनी सहशाग्दियो के सम्पूणं इतिहास मेँ श्रपने-श्रापको जो-ङु बनाया हे वह केवलं उसका प्राथमिक रूपहे जो हम श्रपने-श्रापको बना सकते हैं । उपयुक्त उद्दीपकों के प्रयोग से पुराने श्रादम को नये श्रादम के रूप में बदला ला सकता हे । उदाहरण के तौर पर श्राघुनिक संसार में प्रथ्वी के शधिकांश निवासी २०




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