अँखियाँ निहार के पग - धूरि झार के | Ankhiyan Nihar Ke Pag-dhuri Jhar Ke

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Ankhiyan Nihar Ke Pag-dhuri Jhar Ke by बरुआ - Baruaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) के संकुचित श्रविकसिति पैरो की तरह रह गया है या इसे ऐसी लकष्मण- रेखा दे श्रत्दर श्रवस्थित कर दिया गया है । एसा सर्वगुण सम्पन्न रावण श्रपने यु का सबसे शेष्ठ मनोवैज्ञानिक भी था । श्र उसका सनोवेज्ञानिक संबल ही था कि वह सीता का अपन हरण कर सकने मँ समथ हो सका ।. रामायण कहती है कि सीता भंत तक 'रायण के पाप से बंचिंत रही ।. ऐसा लगता है कि लेसे कोर निर्बद्धं मूर्ख अपनी सफाई पेच कर रहा ह 1 रावण कौ सीत के साय सहवास फरमे के सोभ का संवरण करली ही कहाँ पडा । उसने जब सीता को लक्ष्मग-रेखा से बाहर श्रते ही प्रषनी बाहुश्रों मे बद्ध कर श्रषने पृष्पक- विमान में श्रपनी गोवी में सेठा कर लंका तंक की यात्रा की है, बहीं उसके लिये श्रत्यधिकः थी । रावण एक संनः सौंदर्य का कलाकार था । भोगं सो उससे जीवन में काफी कर लिया था ।. श्ौर इलनी उच्च कलाश़ों के विश्च होने फे पश्चात्‌ वह्‌ कभी नौ सीता के साथ श्रपनी पशु-वासना करते की ग्लानि सम में ला हो नहीं सकता था । इस स्थल पर श्राप तुलसीदास जी श्रौर बाल्मीकि जी कया कहते हैं; यह भूल जायं । यह लक्ष्मग-रेखा पुरी रासायण का केन्द्र-स्थल है । श्रौर रास की कुदिया केन््रबिदू, जहाँ पर उस युग का सर्यादपपुरष समज से बहिष्कत होकर पड़ाव डाले हुये था ।. इसी बिड पर उस युग की प्रती. किनी नारी श्रपने पति के संग जीवन-यापन कर रही है । श्रौर इसी स्थल पर मानवी गुणों का एक ध्रदृमृत ्नवतारौ इंसान (म श्रवतार का श्रयं फटे चिथ से बने हए ताजा कागज को पनत हूँ, था फिर वे शदे सड ये समुद्री पानी सरे ऊपर उसे हुए पानी भरे बावलों के शतिरिफ्त कुछ नहीं होते ।) लकष्सग रहता है। वह पी बड़ी भाभी को सता शानता है झौर अपने बड़े भाई को प्रपंता परस देवता ।. छेकिन इस रूप में तो लक्ष्मण कुछ भी सर्वोपरि नहीं है। दत्पुदों लक मे हर छोरे भाई की भतः रिथतिं यही रही होगी ।. लक्ष्मंग श्रमं पुरुष ह पर हूं, जहाँ बहुं सोत। के




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