सप्त किरण | Sapt Kiran

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Sapt Kiran by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन्दिर १५ पुजारी ने पूछा--क्या है रे क्या करने श्राई है ! सुखिया चबूतरे पर आकर ,बोली--ठाकुरजी की मनीती की थी महाराज; पूजा करने श्राई हूँ । पुजारीजी दिन भर ज़मीदार के शसामियों की पूजा किया करते थे, शोर शाम-सबेरे ठाकुरजी की । रात को मन्दिर ही में सोते थे, मंदिर ही में श्रापका भोजन मी बनता था, जिससे ठाकुरद्वारे की सारी श्रस्तर कारी काली पड़ गई थी । स्वभाव के बड़े दयाज़ु थे, निष्ठावान्‌ ऐसे कि चाहे कितनी ही ठण्ड पड़े, फितनी दी ठरडी हवा चले विना स्नान किये, मुह मे पानी न डालते भे | श्रगर इस प्र भी उनके दाथों श्रीर पैरो में मैल की मोटी तह जमी हृद थी, तो इसमें उनका कोई दोष न था । बोले--पी कया भीतर चली झायेगी ? दो तो चुकी पूजा । यहाँ श्ाकर भरष्ट करेगी ! एक भक्तजन मे कहा--ठाकुरजी को पवित्र करने श्राई हे ! सुखिया ने बड़ी दीनता से कहा--ठाकुरजी के चरन छूने झाईं हूँ सरकार ! पूजा की सब सामग्री लाई हूँ । पुजारी--कैसी बेसमभी की बात करता है रे, कुहं पगली तो नहीं हो गई है । भला तू ठाकुरजी को कैसे छुयेगी ! सुखिया को श्रव तक कमी ठाकुरद्वारे में श्राने का अवसर न मिला था । श्राश्चयं से बोरली--सरकार, वह तो संसार के मालिक हैं । उमके दरशन से तो पापी भी तर जाता है, मेरे छूने से उन्ददे केसे छूत लग जायगी ! पुजारी--श्ररे, तू चमारिन है कि नहीं रे ! सुखिया---तो क्या भगवान ने चमारों को नहीं सिरजा है ! चमाररं का ,भगवान कोई श्रौर है १ इस बच्चे की सनौती है सरकार ! इस पर वदी भक्त महोदय, जौ श्रव स्तुति समाप्त कर चुके थे, डपटकर बोले--मारके भगा दो घुड़ेल को । भरष्ट करने श्राई है, फेंक दो थाली-वाली । संसार में तो श्राप ही झाग लगी है, चमार भी ठाकुरजी की पूजा करने लगेंगे, तो पिरथी रहेगी कि रसातल को पवली जायगी । दूसरे भक्त मद्दाशय बोले--श्रब बेचारे ठाकुरजी को भी चमारों के हाथ का भोजन करना पडेगा | च्व परलय होने में कुछ कसर नददीं है |




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