श्रीपाल चरित्र | Shri Pal Charitr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
249
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खोपालचरिच। ११
सब ही दया धमं को धरें । परहिसा नदीं कोठः करे ।
अतिरमणीक हार बाजार । वसं तहां नर साहुकार ॥ ५७३ ॥
वणजं नग निमलक चुनी। जिनको यश्च बोरे सब दुनी ।
कहं होय बालक पेखणो । सो ककु ताहि कहत नहीं बणोा ॥ ७४
कहिं कहिं नाटक नाचै ठट । कहिं कहिं याचं बराह्मण भार ।
की छतीस वसं जहां रोय । कुल की रीतिन छाड़े कोय ॥ ७५
अपने अपने चित्त सब सुखी । तिह पुर माहि न कोठः दःखी ।
आस पास खाति का सुवाण । वहु बावडी कुवा निवाण ॥ ७६
अर तहां बाग रवाने खरे । सघन दाख दाडम दुम फरे।
बहुत भान्ति असृतफल रूख । देखत नयन न लागे भूख ॥७७॥
फे नारियल अंब अभंग । बहून फटी नारंग सुरंग ।
अगिणत्त केर! ओर खजुर । रह विजोरा तहां भरपुर ॥ ७८॥
कसम कदंब रहे बहु पल । रहे रमर तिनके रस भृल ।
तिह की शोभा कही न जाय । योजन वास रही महकाय॥ ७२॥
॥ वस्तुवन्ध छन्द ॥
केवर। केतकी मरो मोगरो अरजाय
गुखाव कुजो अवर करणो र्यो तहां महकाय ।
(७४) नग न रत्न । निर्मालज न अमो लक (जिनका. मुल्य नहीं हो सके)
चुनी = चुन्मो (लाल रत्न) । दुनो = दुनियां । पेखणो = खेल ।
(७५) याचे = मागे। कल = जाति।
(७६) खोतिका = खाद । सवाण (सोपान) = पेडो। निवाख = भोले तालावश्रादि।
(७9) रवाने = सुन्दर ! सघन = संघनं । दाडिम = अनार । द्रुम = दश्खत ।
(<प)अंब न आस । अभंग न वेशसार । सुरंग > अच्छे रंगवाली । अगणित = जो
गिरे न जवं । बिजोरा न निम्बुकीजातका खडाफल जिसमें सुइंगल जावे
(७८) कसुस * फल ।
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