श्रीपाल चरित्र | Shri Pal Charitr

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Pal Charitr by कवि परिमल्ल - Kavi Parimall

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कवि परिमल्ल - Kavi Parimall

Add Infomation AboutKavi Parimall

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
खोपालचरिच। ११ सब ही दया धमं को धरें । परहिसा नदीं कोठः करे । अतिरमणीक हार बाजार । वसं तहां नर साहुकार ॥ ५७३ ॥ वणजं नग निमलक चुनी। जिनको यश्च बोरे सब दुनी । कहं होय बालक पेखणो । सो ककु ताहि कहत नहीं बणोा ॥ ७४ कहिं कहिं नाटक नाचै ठट । कहिं कहिं याचं बराह्मण भार । की छतीस वसं जहां रोय । कुल की रीतिन छाड़े कोय ॥ ७५ अपने अपने चित्त सब सुखी । तिह पुर माहि न कोठः दःखी । आस पास खाति का सुवाण । वहु बावडी कुवा निवाण ॥ ७६ अर तहां बाग रवाने खरे । सघन दाख दाडम दुम फरे। बहुत भान्ति असृतफल रूख । देखत नयन न लागे भूख ॥७७॥ फे नारियल अंब अभंग । बहून फटी नारंग सुरंग । अगिणत्त केर! ओर खजुर । रह विजोरा तहां भरपुर ॥ ७८॥ कसम कदंब रहे बहु पल । रहे रमर तिनके रस भृल । तिह की शोभा कही न जाय । योजन वास रही महकाय॥ ७२॥ ॥ वस्तुवन्ध छन्द ॥ केवर। केतकी मरो मोगरो अरजाय गुखाव कुजो अवर करणो र्यो तहां महकाय । (७४) नग न रत्न । निर्मालज न अमो लक (जिनका. मुल्य नहीं हो सके) चुनी = चुन्मो (लाल रत्न) । दुनो = दुनियां । पेखणो = खेल । (७५) याचे = मागे। कल = जाति। (७६) खोतिका = खाद । सवाण (सोपान) = पेडो। निवाख = भोले तालावश्रादि। (७9) रवाने = सुन्दर ! सघन = संघनं । दाडिम = अनार । द्रुम = दश्खत । (<प)अंब न आस । अभंग न वेशसार । सुरंग > अच्छे रंगवाली । अगणित = जो गिरे न जवं । बिजोरा न निम्बुकीजातका खडाफल जिसमें सुइंगल जावे (७८) कसुस * फल ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now