उदाहरनमाला | Javahar Kiranavali Udaharanmala Poiranik Khand

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Book Image :  उदाहरनमाला  - Javahar Kiranavali Udaharanmala Poiranik Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदाहरणमाला ] ४ [३ इन्द्र के यह प्रशंसा्मक वचन सुनकर एक देव ने विचार किया- इन्द्र महाराज देवो के सामन एक मनुष्य कौ इतनी प्रशंसा क्यो करते है ? अच्छा, उस सेवाभावी मुनि की परीक्षा क्यो न की जाय ? आखिर नदिषेण मुनि मनुष्य है । मनुष्य की नाक मे दुर्गन्ध जाती दै; अतएव दुगेन्ध द्वारा उन्हे घवरा देना स्वाभाविक और सरल दै । इस प्रकार विचार करके उस देव ने नंदिसेन सुनि की परीक्ञा लेने का द्द्‌ निश्चय कर लिया। वह देव साधु का स्वांग बना कर जहाँ नंदिसेन मुनि ठहर थे, वहाँ पास के एक जंगल मे जाकर पड़ा रहा ! उस देव ने अपन शरीर को ऐसा रुग्ण बना लिया कि शरीर के छिट्रो में से रक्त ओर मवाद्‌ बहने लगा । उस रक्त श्मौर पीव मे से असच्च दुग॑न्ध निकल रही थी । इस प्रकार रोगी साधु का भप धारण करके उस देव ने नन्दिसेन मुनि के पास समाचार भेजा कि पास के जंगल मे एक साधु बहुत बीमार हालत मे पडे है । उनकी सेवा करन वाला कोई नहीं है, रत: उन्हे बहुत अधिक कष्ट हो रहा है । नदिसेन सुनि को जेसे दी यह समाचार मिले कि वे तुरन्त उन रोगी साधुकी सेवा करने के लिए चल पड़े । मुनि मन ही सन बिचारने लगे--'मेरा सौभाग्य दै कि सुमे साधु-सेवा का ऐसा सुअवसर हाथ आया है ।” इस प्रकार विचार कर नंदिसेन मुनि रोगी साधु की सेवा करने के लिए जंगल मे पहुँचे । मुनि उस कपटी वेपधघारी रोगी साधु की ओर उयो-ज्यो आरे जाने लगे त्यो-त्यो उन्हे अधिका- धिक दुगेन् आने लगी । परन्तु नेदिषेण सुनि उस असच्च दुर्गन्धसे न घबरा कर रोगी साधु के समीप पहुँच गये। नदिपेश मुनि




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