घनानन्द - कवित्त | Ghananand - Kavitt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( /र५ श्रौर मक्ति कौ संप्रदायों को भाव-सार्वना मं वह श्रपना श्रारो पंत ख्य सहज ही स्पष्ट कर देता है । सग॒ण-मक्ति हो साथना में श्रधघिक गुह्य सावनो चलत नहीं पाती शोर यदि उसमें कुछ थोड़ी बहुत चलंवी मी हो दो मो भारतोय साहित्य की व्यक्त शब्दवावता इसका वो बहुत दिनों तव नहीं सँमाल सकती । इसी से मव्यकाल के स्वच्छंद प्रवाह में रहस्य को त्क मर मिलती है श्राघुनिक युग में भी वाद के छ यात्राद के खाव जौ रहस्यात्मक प्रवृत्ति प्रवल हुई वह बहुव दिनों तक टिक न सकी | केवल महादेवी वर्मा श्रमी तक इसे ढोए चल रही हैं । पर वहां मो परिय्पाम म्रत्यंत कोण हो गया है | स्वच्छंद प्रवाद के प्रमुख कर्तारौ में रसखानि, श्रालम, ठाकुर, घनानद, बोवा श्रौर दिजदेव का नाम लिया जा पर इस प्रवाह केद्युटर्मये मो कई मिल सकते हैं । इन सबमें श्रेष्ठ घनानद ही प्रतीव दोतते हैं। इसका कारण यह है करि इनकी संवेदना सर्वाधिक साहित्यिक है । ररुखानि में छादित्विक निलारन होकर संवेदना को खहज प्रमिव्यक्ति मात्र है। श्रेष्ठचा का वास्तविक कारण घनाचंद को साहित्य- श्रुतता हूं। उत्त, छहां कर्त्रा में सकता है । छानवोन करने रुववे श्रधिक साहित्यश्नुत घनानंद हो प्रतीत होते हूँ । इस साहित्यश्रुति का प्रभाव उनके रचना के प्रत्येक श्रवयव पर्‌ पड़ा हु. है नकी रचना के दो प्रकार हु-एक प्रंमसंवेदना को श्रभिव्यक्ति दूसरी भक्तिसंवेदना की व्यक्ति । इनकी भक्ति-संवेदना को व्यक्ति रसखानि वहुत निकट है। प्रेमच॑वेदना की प्रमिन्धक्ति साहित्यिक भंगिमा गवलित दे श्रीर मक्तिसंवेदना को व्यक्ति में उच संगिंमा की कमी या म्रमाव लदय सेद के कारण हैं । एक को रचना सद्ददयों के लिए है दूरी की कोरे मर्तो के लिए, 1 एक सम्यक श्रचुनूषठि क लिए ट दुपरी संकीतन के लिए 1 घनानद वल रानि कौ ही रचना नहीं मिंलतो 1 उसमें श्रालस बीच, ट्रिदेव को उत्छष्ट विशेपठाग्रों का समावेश हो गया पर घनानेंद की छुछ दिशेपता ऐसी है जोन रघखानि में है, में, नठःछुर में; न वोवा में, न द्विज ६ ध ठ १ ङ 1 न श्रालम क 1 यह्‌ कटू का श्रावश्यकता नहीं कि उक्र स्च्छद गायो से श्रपनो विलेयवाभश्रों के कार पुयक रश्रे् हैं वह रीतिकाव्य के कर्ताप्रों वे श्रपनी विरोपताश्रों च्रौर प्रव- + 4 ५ डे ई




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