श्रीपाल चरित्र की समालोचना | Shripal Charitra Ki Samalochana
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मिथ्यो दैव, शुरु भौर धर्म का कभी विश्वास.न नरना भौर सास कदने कौं बात य
' | है कि खा जाति का खभाव बहुत हो चपन होता है इसलिये किसी ख्री पर विस
| न करन । बड़ को मतता, युवती को बहिन और छोरी को पुरी समण्ना मौर काज
| ष्टमा सै वेरावर वारं बरस गिनकर इसौ तिथि को वापिस घर लार आतनता} यदि
आपअ्टमी को नदीं ध्येये तो मै नवमी को दक्षा के ठंगी'” न शब्दों भ से प्रलये
शभ बह्ञानतापूण है । सारौ नीति भोर सम्पूण मध्वत्पशाञ्च ॐ ज्ञाता पति कीः खो
| (जो खय भो अ यात्मिक ज्ञान में पूण बताई गई है ) पति पर भधिश्वास करके उस
{| फो शील पालने की शिक्षा देती हैं यद एक आशर्यं है ¦ खय सरी होति हए भी उने
| शिया छौ फान हानि करने बे शष “खा जाति चपल होती है इसलिये किसी का
विश्वास नदीं करना” उच्चारण क्रिये यह दूसरा आश्चयं है ! ख) का अर्थ है 'दासत्व
| करते बा दासीः देखो व्याद्या मीःपत्रिवर जैन धर्माजुय।यो ऊ सिवा यदि कोई दू
| सरा लेखक छिखता तो बह मिथ्यात्वी,, मूर्ख, अधिवेकी गिना जाता । ' खेर कुछ भी
1 हो मगर इतना उपदेश ` भिलने पर भी--शीलनत पालन करने की सास सचना मि
लने पर भी-यद चरमंशरीरों महात्मा तो ऊपरी २ हज़ारों खियों का पाणि-ग्रंदण
| क्षसा ही गयां । यह मौ श्रीफल की लियाकत का एकत अच्छा नमूना हैं। जिसके
| रप को श्रोपार ने खयं वर्णनं किया हैं' जिसके प्रत्येक भद्ू'की शीाभा को चर्णन के-
| शते श्वीपाल्न खयं दीं लज्ञाया जिसके प्रताप से ही खयं जीवित रदा भौर न॑चयोवन
:| पायां रो सोलह रस्त की पतिपरायण खी कौ छाती पर हज्ञासो -सौतो का साल [. `
¦| रखनं। भल्ला चरमशरीरी श्चीराज्त के सिवा अन्य कौन पुरुष कर सकता था १ भर्तु |
श्रीपाल भक्गेल्ला दौ रवाना होगा । अनेकं चन, पचत; शफा, सरोग, 'खाद
. ”। नदी, शहर भादि से गुजरता हुआ पदल ही चलकर चरसनगर में पहुंचा 1' वहां च-
इक नाक वन में उसने किसी नंवयुबक को जा कि चख्रासूपणों से अंखंछत होरही
:| था-मेन््र जपते इए देता (रीष के पूछने पर उसने उत्तर दिया-- “हे खामिन |
{ अजान पुष को पिरे ःटी वाक्य में खमिन कफर सम्वोश्रन करे यह मी ` एक
आश्चयं है ! ) मेरे गुरु ने विद्या का मन्त्र दिया है मैं उसका जाप कर रहा हूं; 'परन्तु
मेरा मन चश्चुल एक जगह स्थिर नहीं रहता इसलिंये मन्त्र सिंध नदों होता, इसे- |.
लिये भाप ईस विद्या को सिद्ध कर; कमोकि भाष *सदनशील दिखाई देते हैं” कुछ
५ जानाकानी कसमै के वाद् श्रीपाल मन्त्र सिद्ध करने के लिये वा आर चह एक ही
दिनमें सिद्ध होगंया । यह सिद्ध बिया फिंर उ लगे उस वीर ( विधयाघर ) को दे दी
गगन
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