गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-सामग्री १६
किंतुखेद है कि इस दहत् प्रंथ के एक लाख सेंतीस हजार ना
से वासठ उदार छंदों में से हमें केवल अवध-खेंड के ४२ चापाइयों
आर ११ दोहें। को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जिन्हें स्तरय॑ इंद्रदेव-
नारायणजी ने उक्त लेख में दे दिया है। ये दोाहे-चापाइयाँ इस
पुस्तक के पहले परिशिष्ट में दी गई हैं । शेष “उदार” छंदों को
जगत् के सामने रखने की उदारता उन्हे नही दिखाई है। उक्त
गंध को भी स्वयं इंद्रदेवनारायणजी के अतिरिक्त श्रीर किसी लब्ध-
प्रतिष्ठ लेखक से नहीं देखा है। संभवत: वे उसकी जाँच कराना
पसंद नहीं करते। उस विषय के पत्रालाप से भी उन्हें आना-
कानी हैं। इसलिये यह निश्चय नहीं किया जा सकता है कि
यह ग्घ कहाँ तक प्रामाणिक है। इस प्र॑घ के जे छंद छप चुके
हैं, उनमें तुलसीदासजी के जीवन की जा घटनाएँ दौ हुई हैँ वे
राज तक के विचारों में वहुत उल्लट फेर उपस्थित करती हैं । इंद्रदेव-
नारायणजी के प्रांचीय स्वजन लाला शिवनंदनसहाय ने इस अंघ की
प्राप्ति के विषय में जा कुछ लिखा है वह मन में संदेह उत्पन्न करता
ॐ, सै ङ ~
हे । वे लिखते हे--
श्रमं जात इया है कि केसरिया ( चंपारन )-निवासी चायू इंद्देवनारायण
को गोसादंजी के किसी चेले की, एक लाख देरदे-चौपादये मे लिखी दई,
योसाईजी की जीवनी प्राप्त हुई है। सुनते हैं, गोसाइंजी न पदले उसके
प्रचार न होने का शाप दिया था; किंतु लेागों के थनुनय-विनय से शाप-सेाचन
का समय संचत् १६६७ निर्धारित कर दिया ।. तय उसकी रक्षा का भार टसी
मेत को वषा गया जिसने गोसांईजी को श्रीषहटनुमानजी से मिलने का उपाय
बताकर श्रीरामचंद्रजी के दर्शन का उपाय बताया था। चह पुस्तक भूटान के
किसी ब्राह्मण के घर पढ़ी रही ।. एक सुंशीजी उसके वाढकों के शिक्षक थे ।
वालको से उस पुस्तक का पता पाकर उन्दने उसकी पूरी नकल कर डाली 1
इस शुरुतर पराध से क्रोधित हो वह श्राह्मण उनके वध के निमित्त र्यत
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