हिंदी श्रीभास्य भाग ११ | Hindii Shriibhaashhya Vol.11
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ है
ट्री
- फकपिरापर पुरिशयं पुस्शम श्रति के
पुस्य परमात्मा ही हैं: इस ददराधघिकरण में
है कि पुरिंपय शब्द के द्वारा कहा. गया जो आाकश उसका
वाच्य परमात्मा ही है. सडाभूतकाश झथवा जोवातना नहीं 1
॥ }
न
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द्वारा उखिन परम
यह् बचनाया जाता
पहने इक्षति कर्माघिकरण में ब्रह्मसोक शरद को परमात्मा का
म्न सिद्ध च्या गवाह | इम अधिकरण में यह् निद्र क्वा
जा रहा है कि ब्रह्मरोक तथः ब्रह्मपर दोनो शब्द् ब्रह्मा के स्थान
क वाचक हैं । ईश्षति क्मांधिकरण मे यह वतटाया गया दे
कि अन्तरिक्ष शब्द प्रसिद्ध अन्तरिक्ष का वाचक नहीं हैं । उसी
नरह इम अधिकरण में यद्द बनलाया जाता है कि आकाश शब्द
मृत--इत्येवं प्राप ऽभिश्रीयत-दहर् उत्तरभ्यः । दहराकाशः
परं बह्ण; ङतः ? उत्तरस्या वाक्यगतम्या हतुम्यः । एष
दिजरों विसृत्युविशो ऽ ्वनिवःनऽप
्राव्याङय्हतपाप्मा विजरा शो ङ'ऽविसिवत्मऽपे-
कि
पर रम्पत्द का नस्पत्वउ झुसर इति निरुरादिकान्सन्वरइइत
प्रसिद्ध भूताकारा का वाचक नहीं है ।
पड
पाप्मन्वा टिक सत्यकामत्वं सत्यमझूल्पत्व॑ चेति दहरसाकाश
यमाणा गुणाः दहराकाशं पर॑ दूझति ज्ञापयन्ति ।
ञ्य य इहात्मादमनुषि व्रजन्त्येतां सत्यान्कामांस्तेषां
सर्वेषु लोकेषु कामचारा भवतोत्यादिना य कामं काम-
यते स.ऽस्य स॒ङ्ल्यादेव समुत्तिष्ठति तेन संपन्ना महीयत
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