हिंदी श्रीभास्य भाग ११ | Hindii Shriibhaashhya Vol.11

Hindii Shriibhaashhya Vol.11 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ है ट्री - फकपिरापर पुरिशयं पुस्शम श्रति के पुस्य परमात्मा ही हैं: इस ददराधघिकरण में है कि पुरिंपय शब्द के द्वारा कहा. गया जो आाकश उसका वाच्य परमात्मा ही है. सडाभूतकाश झथवा जोवातना नहीं 1 ॥ } न श द्वारा उखिन परम यह्‌ बचनाया जाता पहने इक्षति कर्माघिकरण में ब्रह्मसोक शरद को परमात्मा का म्न सिद्ध च्या गवाह | इम अधिकरण में यह्‌ निद्र क्वा जा रहा है कि ब्रह्मरोक तथः ब्रह्मपर दोनो शब्द्‌ ब्रह्मा के स्थान क वाचक हैं । ईश्षति क्मांधिकरण मे यह वतटाया गया दे कि अन्तरिक्ष शब्द प्रसिद्ध अन्तरिक्ष का वाचक नहीं हैं । उसी नरह इम अधिकरण में यद्द बनलाया जाता है कि आकाश शब्द मृत--इत्येवं प्राप ऽभिश्रीयत-दहर्‌ उत्तरभ्यः । दहराकाशः परं बह्ण; ङतः ? उत्तरस्या वाक्यगतम्या हतुम्यः । एष दिजरों विसृत्युविशो ऽ ्वनिवःनऽप ्राव्याङय्हतपाप्मा विजरा शो ङ'ऽविसिवत्मऽपे- कि पर रम्पत्द का नस्पत्वउ झुसर इति निरुरादिकान्सन्वरइइत प्रसिद्ध भूताकारा का वाचक नहीं है । पड पाप्मन्वा टिक सत्यकामत्वं सत्यमझूल्पत्व॑ चेति दहरसाकाश यमाणा गुणाः दहराकाशं पर॑ दूझति ज्ञापयन्ति । ञ्य य इहात्मादमनुषि व्रजन्त्येतां सत्यान्कामांस्तेषां सर्वेषु लोकेषु कामचारा भवतोत्यादिना य कामं काम- यते स.ऽस्य स॒ङ्ल्यादेव समुत्तिष्ठति तेन संपन्ना महीयत




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