अवदान और आकलन | Avdan Aur Aaklan

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नेमीचन्द्र जेन - Nemichndr Jen

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प्रेमचंद जैन - Premchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुझे केवल उनका वह लेखन सामने रखना है जो “जैन साहित्य के मदिर मे निर्मित वेदी पर स्फटिक मूतियो की तरह प्रतिष्ठा प्राप्त है। साहित्य का मूल किसी विधा से जडा रहता है अत साहित्य के धरातल पर 'विधा' की चर्चा/समीक्षा इस आलेख का सुख्य उद्देश्य है। उनके समस्त लेखन को दो भागो मे रख दिया जाए, एक - काव्य प्रखड, दूसरा - गद्य प्रखड। जाहिर है कि इन दो प्रखडो की सीमा मे भाने वाले कुछ शब्द-चित्र ही चर्चा मे स्थान पा सकेगे, वे सब नही जो पत्रिकाओ को सजाने-सँवारने के लिए लिखे जाते रहे है। मेरा मतलब यह कि लेख लेख होता है, सपादकीय सपादकीय। तो पत्रिकाओ के मैदानी क्षेत्र मे डॉ साव ने लेखी और सपादकीयों को इतना गडडम-गड्ड किया है कि उनके सपादकीयो को भी साहित्य की श्रेणी मे धरा जाने लगा। मै इधर कठोरता से चलता मिलूँगा, आम को आम और इमली को इमली कहने का साहस करस्हँगा। उनकी ११० पुस्तको मे हजारो पृष्ठो की सामग्री है, पर मै केवल वे पृष्ठ चर्चा मे ला रहा हूँ जो गद्य या पद्य मे, केवल मौलिकता से सरोकार रखते है। ध्यान रखे, पत्रकारिता के धरातल पर उनके दारा लिखित समस्त पुस्तके, समस्त पृष्ठ, समस्त पक्तियाँ चर्चा मे लाई जा सकती है, पर साहित्य के धरातल पर यह सभव नही है। डो नेमीचन्द के पद्यात्मके साहित्य को पहले दू रहा हँ। उन्होने कविता की पोथी पृथक्‌ से वनवाई हो एेसा नही है, वे कविताएँ तो रचते रहे, पर समस्त रचनाभो की एक पृथक्‌ किताव नही वना|वनवा सके। कहे उनके साहित्य का एक पूरा खड (स्फुट' वन कर रह गया था। हाल ही मे उनकी गद्यागद्य रचनाओ का एक चार सौ पृष्ठीय ग्रथ तैयार किया गया है- “डॉ. नेमीचन्द जैन साहित्य एक अवलोकन' जिसमे काव्य प्रखड के मात्र ४१ पृष्ठ देखने को मिले है। इसका मतलव है कि उन्होने पचास वर्प मे मात्र ४१ पृष्ठो की काव्य-सर्जना की है, कुछ अभी अप्रकाशित भी मान ले तो वे १०-२० हो सकते है। कहे, कुल ६० पृष्ठ लवी है उनकी काव्य-यात्रा। इतनी कम कविताएँ लिखने से कोई राष्ट्रीय मच पर चर्चा के लायक बनते नहीं देवा गया है स्वतत्र भारत मे। प्रतु जव मै उनकी कविता मे-से होकर गुजरता (4 तो लगता है कि कविता का मूल्य पृष्ठ-सस्या से नही, उसकी भावभगिमा सै ओर भीतरी गहराई से वनता है। पढते-पढ़ते उनकी सकलित ४३ कविताओ से सजे-सँवरे समस्त ४१ पृष्ठ मेरी आँखो से होकर मन भूमि तक चले जाते है। तव लगा कि यदि ४१ पृष्ठ की एक लघु पुस्तिका बनाई जाती, तो भी, उसकी रचनाओ के कारण वह एक 'मूल्यवान अ्रथ' का दर्जा प्राप्त करने मे सक्षम रहती। इन पृष्ठो मे उनके काव्यातुवाद शामिल नहीं है। | घी प्रेमचन्द द्वारा सपादित डॉ. साव की एक अन्य पुस्तक जिसका नाम हैं कविताएँ' मेरे समक्ष कुछ वाद मे आती है। ९६ पृष्ठो की इस पुस्तक मे कृच अधिक अवदान ओर आकलनं




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