हिन्दी अभिनव भारती | Hindi Abhinav Bharati

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Hindi Abhinav Bharati  by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटयशास्वपर विदेशी विद्रार्नोका कार्य-- सन १८६४ में निर्णयसागर प्रेस वम्बईसे जो नाट्यशास्त्रका प्रकाशन हुमा था उसके लगमग ७० वपं पहले युरोपरमें नाट्थक्षास्तकी चर्चा झारम्भ हुई थी । विलियम जोन्स नामक विद्वानुने सबसे पहिले सन १७८९ म कालिदासके प्रसिद्ध शकुन्तला नाटकका श्रग्रजी्मे अनुवाद प्रकाशित कराया । इस श्रनुवादने सबसे पहिले पूरोपीय विद्रानोको सम्कृत साहित्यक श्रघ्ययन के प्रति विष्ेप खूपसे प्रेरित किया । भरत-नाय्यशास्वरकी चर्चा सबसे पहिले एच ० एच ० विल्सन नामक विद्ठानने श्रषने सिलेक्ट स्पेसीमेन्स श्राफ दि थियेटर श्राफ हिन्दूज' (तीन माग, कलकत्ता १८२६-२७) नामक ग्रन्यमे उठाई थी । सन १८२६ में झ्पने ग्रन्थके प्रथम मागको प्रकाशित करते समय उन्होंने यह लिखा था कि--'दि नाट्यशास्त्र मेन्दान्ड एड कोटेड इन सेवरल कमेन्ट्रीज़ एण्ड श्रदर वक्‍्सें हैड वीन लास्ट फार एवर' श्रर्थातु 'नाट्थशास्त्र जिसके उद्धरण झनेक टीकाग्रो ग्रौर श्रन्य ग्रन्थोरमे पाए जाते हैं सदाके लिए लुप्त हो गया है । युरोपीय विद्वानोमें नाट्यदशास्त्र के विपयमें यह पहली चर्चा थी जो नितान्त निराशाजनक थी । इसके लगभग चालीस वषं बाद १८६५ में एफ० हाल नामक विद्वानुने धनज्जयके ददरूपकका ग्रग्रेज़ी अनुवाद (कलकत्ता १८६ १- १८६५) प्रकाबित कराया । इस ग्रन्थके प्रकाक्षनमें कई वर्ष लगे । किन्तु लगभग समाप्ति तक पहुँचनेपर 'हाल' को नाट्यशास्थ्रकी एक पाण्डुलिपि प्राप्त हुई । उसका कुछ श्रम उन्होने दशरूपक के भ्न्तमे परिशिष्ट रूपमें मुद्रित भी कराया । हाल महोदय ने दशष्पकके प्रकाशनके बाद इस नाट्यशास्त्रका सुसम्पादित सस्करण प्रकाशित करनेका विचार भी किया । किन्तु उनको एक ही प्रति मिली थी श्रौर वह्‌ श्रत्यन्त श्रदयुद्ध भौर स्थल-स्यलपर खण्डित थी । उसके श्राधारपर सुसम्पादित सस्करणुका प्रस्तुत किया जाना श्रसम्भव था । इसलिए उनको श्रपना विचार त्याग देना पडा । इस प्रकार नाट्थशास्त्रके प्रकाशनका यह प्रथम प्रयास विफल हो गया । परन्तु इस विफलतासे विद्वाद्‌ लोग निराश नहीं हुए । इस विफल प्रयाससे भी उनको वडा ताभ हुआ । ४० वपं पहले विट्सनके नाटचशास्त्र-विपयक निश्चवयने जो एकं निराश्ञावादी भावना उत्पन्न कर दी थी उसकी समाप्ति हो गई । इसलिए विद्वान अनुसन्घानकर्ता विशेष उत्साह के साथ इस गन्यरत्तनके उद्धारकेलिए तत्पर होने लगे । इसी वीचमें सन १८७४ में जमंनके प्रसिद्ध विद्वान्‌ हैमान ते तव तककी उपलब्व पामग्रीके प्राधारपर भरत-नाटचश।स्रका विवरण देते हुए एक महत्वपुणं लेख प्रकाशित किया । इस विद्रत्तापूणं लेखने भरत-नाटचशास्वरके अ्रघ्ययन प्रर द्रनुसन्धानकेलिए विद्रानोमें प्रौर भी अधिक्‌ श्रभिरुचि एवं उत्साह उत्पन्न किया । 'गोटिंगन' नगरकी राजकीय वैज्ञानिक परिपद्की विवरणु-पत्रिकामे प्रकाशित्त हैमान के उस लेखके प्रकाशित होनेके ६ वर्ष वाद 'रंग्नो' नामक प्रसिद्ध फ्रेंच विद्वानने १८८० में नाट्यशास्त्रके सब्रहूवें अध्याय का श्रौर उसके वाद १८८४ में पन्द्रहवे-सोलहवें ब्ध्याय तथा उसके बाद छडें-सातवें अध्यायका प्रकादान वराया । इस प्रकार प्रपणं स्पर्मे ही सही, भरत-नाटचशास्प्रका यह सवयसे पहला सस्करण प्रकाशित हुब्ना । न रनों के बाद उनके दिप्य 'ग्रोसे' ने १८८८ में नाटयशास्त्रके समीत-सम्बन्धी २८वें धध्यायकों प्रकाशित किया । श्रौर फिर १८९८ में नाट्यशास्त्रके प्रथम चौदह प्रध्यायोका एक सुलम्बादित सस्करण 'ग्रोसे' ने प्रकाशित कराया । इस प्रकार “रगनो' तथा उनके शिष्य गरो इन




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