श्री स्वामिहंसस्वरुप कृत त्रिकुटी विलास | shree swamihansswaroop krat trikuti vilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्ध्या दिधिः ६
अब तीनें। काल की सन्ध्यो के नाम
ओ स्वरूप वणेन किथे जाते ह ।
श्रातः सन्ध्यास्वरूपवणनम्. वहु-
त्पाराशर:-- दूवसन्थ्या तु गायत्री व्राह्मणी
हंसवाहना । रक्तपद्मारुणा दैवी रक्तपा
सनस्थित ॥१॥ रक्ताभरणमासाङ्ष रक्त
मारयास्बरा तथा । श्रक्तताला शुवाधारा चारु-
हृस्ताऽमरा्चिता ॥ २ ॥ भरागादित्योदयादिदा-
्ुहर्ते वधस सति । उत्यायोपास्येतसन्ध्या
यावतस्यादकेदशंनम् ॥ ३ । विश्वमात सुरा-
भ्यच्यै पराये मायत्नि वेधसि । झवाहयाम्युपा-
स्यथ एहयनोऽस्ति पुनीहि माम् ॥ ४॥
मध्याहुसन्ध्यास्वरूपवर्णनम्-'
वृहत्पाराशरः-सन््ा माध्याहिकी श्वेता सा-
विभी शदेवता । वृषेनरवाहना देवी वालात्रि
-शिखधारिणी ॥ १1; श्वेताम्बरधरा श्वेता नाना
भरण भूषिता । श्वेतस्रगक्षमालापि इतातुरक्त
शृङ्गा ॥ २॥ जलधारा धरा धात्री धरेन्द्रा
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