श्री स्वामिहंसस्वरुप कृत त्रिकुटी विलास | shree swamihansswaroop krat trikuti vilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्ध्या दिधिः ६ अब तीनें। काल की सन्ध्यो के नाम ओ स्वरूप वणेन किथे जाते ह । श्रातः सन्ध्यास्वरूपवणनम्‌. वहु- त्पाराशर:-- दूवसन्थ्या तु गायत्री व्राह्मणी हंसवाहना । रक्तपद्मारुणा दैवी रक्तपा सनस्थित ॥१॥ रक्ताभरणमासाङ्ष रक्त मारयास्बरा तथा । श्रक्तताला शुवाधारा चारु- हृस्ताऽमरा्चिता ॥ २ ॥ भरागादित्योदयादिदा- ्ुहर्ते वधस सति । उत्यायोपास्येतसन्ध्या यावतस्यादकेदशंनम्‌ ॥ ३ । विश्वमात सुरा- भ्यच्यै पराये मायत्नि वेधसि । झवाहयाम्युपा- स्यथ एहयनोऽस्ति पुनीहि माम्‌ ॥ ४॥ मध्याहुसन्ध्यास्वरूपवर्णनम्‌-' वृहत्पाराशरः-सन््ा माध्याहिकी श्वेता सा- विभी शदेवता । वृषेनरवाहना देवी वालात्रि -शिखधारिणी ॥ १1; श्वेताम्बरधरा श्वेता नाना भरण भूषिता । श्वेतस्रगक्षमालापि इतातुरक्त शृङ्गा ॥ २॥ जलधारा धरा धात्री धरेन्द्रा #




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