साधन संग्रह [खण्ड २] | Sadhan Sangrah [Vol. 2]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दासमाय १८६
करीमगधान के निर्म यशा को सुनकर मेरे अन्तःकरण मे रजोगुणी
भौर तभोशुणी ङ्स्सित बत्तियोका नाश करने षाखी भक्ति उरप्च
हरे |
सच साधनामोंमिं श्रीउपास्यदेव की सेवा ही मुख्य है, अन्य सब
कुछइसके अन्तगन हैः ओर इसके चिना अन्य सव कमं यथां
ञ्टेश्यको परा कर नहीं सकते । इस सेश्रा-धमसे सव प्राणि
योकायहुत बडा उपकार होता है, अतणव संसारके कल्याण के
निमित दी धी उपास्यदेव सेवा-धमं ( शुद्ध भाव से किया
हुआ) को चादते है।-
श्रीमडमागवत पुराणका चचन हैः-
तञ्जन्म तानि कर्माणि तदायुस्तन्मनो वचः ।
खां येनेह विश्वात्मा सेव्यते हरि रीश्षरः । « ।
किजन्मिसििर्वेह शोक्लसावित्रयाक्ञेकैः ।
कमैभेवा जयीभोक्तैः पुसो पि विबुधायुषा ॥ १० ॥
श्रुतेन तपप्ता वा कि वचोभिरिचत्तदृत्तिभिः |
बुद्ध्या वा किं निपुणया बलेनेंड्रियराधसा । ११ ।
किंवा योगेन सांख्येन न्थासस्वाध्याययोरपि ।
किंवा श्रेवोभिरन्यैःध न यत्रात्मप्रदो हरिः । १९।
श्रेयसामपि सरवैवामासमा ह्यवधिरर्थतः ।
सरवैषामरिभूतानां हरिरात्मात्मदः भ्रियः-॥ १३।
यथा तरो्भंलनिषेचनेन तप्यन्ति तत्स्कन्धञ्चुओप
शाखाः । प्राणोपहारास्च यथेन्द्रियाणां तथेव
सर्वार्हण मच्युतेञ्या ॥ १४ ॥
( स्क० ४ अ* ३९ )
“ श्रीनास्वजी ने कदा-दे याजाधो । इस संसारम जिसके धारा
{बिभ्वव्धापी श्रीभगवानकी सेवा होती है यदी जन्म, वरी मने, बह
User Reviews
No Reviews | Add Yours...