साधन संग्रह [खण्ड २] | Sadhan Sangrah [Vol. 2]

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Sadhan Sangrah [Vol. 2] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दासमाय १८६ करीमगधान के निर्म यशा को सुनकर मेरे अन्तःकरण मे रजोगुणी भौर तभोशुणी ङ्स्सित बत्तियोका नाश करने षाखी भक्ति उरप्च हरे | सच साधनामोंमिं श्रीउपास्यदेव की सेवा ही मुख्य है, अन्य सब कुछइसके अन्तगन हैः ओर इसके चिना अन्य सव कमं यथां ञ्टेश्यको परा कर नहीं सकते । इस सेश्रा-धमसे सव प्राणि योकायहुत बडा उपकार होता है, अतणव संसारके कल्याण के निमित दी धी उपास्यदेव सेवा-धमं ( शुद्ध भाव से किया हुआ) को चादते है।- श्रीमडमागवत पुराणका चचन हैः- तञ्जन्म तानि कर्माणि तदायुस्तन्मनो वचः । खां येनेह विश्वात्मा सेव्यते हरि रीश्षरः । « । किजन्मिसििर्वेह शोक्लसावित्रयाक्ञेकैः । कमैभेवा जयीभोक्तैः पुसो पि विबुधायुषा ॥ १० ॥ श्रुतेन तपप्ता वा कि वचोभिरिचत्तदृत्तिभिः | बुद्ध्या वा किं निपुणया बलेनेंड्रियराधसा । ११ । किंवा योगेन सांख्येन न्थासस्वाध्याययोरपि । किंवा श्रेवोभिरन्यैःध न यत्रात्मप्रदो हरिः । १९। श्रेयसामपि सरवैवामासमा ह्यवधिरर्थतः । सरवैषामरिभूतानां हरिरात्मात्मदः भ्रियः-॥ १३। यथा तरो्भंलनिषेचनेन तप्यन्ति तत्स्कन्धञ्चुओप शाखाः । प्राणोपहारास्च यथेन्द्रियाणां तथेव सर्वार्हण मच्युतेञ्या ॥ १४ ॥ ( स्क० ४ अ* ३९ ) “ श्रीनास्वजी ने कदा-दे याजाधो । इस संसारम जिसके धारा {बिभ्वव्धापी श्रीभगवानकी सेवा होती है यदी जन्म, वरी मने, बह




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