सरधा आचार की चौपाई | Sardha Aachar Ki Chopai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३.)
रंगा चंगा ने डील सत्रा रे, लोदी मांस बधावण स्डारं।
लिया त्रत न पाले पूरा रे, ते शिव, रमणी सर दूरा॥२॥
चांपी चांपी ने करे अहारो रे, डीत्त फटे ने बधे विकारो रे।
त्यारी देरी षधे आडी ने उभी रे, साथल पिंड्यां पड़ जाये जाड़ी रे ॥ ३ ॥
धृत दूध दही मीठो' भावे रे, कारण मिनि मांगी. न्यव ।
जुदा ल्यावे तसु जणा रे, ए तो पेट भरण रो उपायों ॥ ४॥
कोरो घृत पीषे धिधारी रे, आ गत नहीं जझचारी |
मर्यादा बिन करो आहारो रे, तिख लोपी भगवन्त कारो ॥ ५ ॥
ताक ताक जावे घर ताजा रे, साधु मेष लियो नबि लाजै।
घर घर जाये पड़घो मांडे रे, नहीं दियां भाण जिम भांडे॥६॥
दातारं करे गुण ग्रामो रे, पाड नहीं दे तिणरी मामो। .
करे ग हस्थ आगे बातो रे, नहीं देवे बहरावे त्यारी करे बातो ॥ ७ ॥
श्रावक श्राविकां उपर ममता रे, शिष्य शिष्यणी री नही समेता
मूड चले काल दकाल, त्याष्वः त्रत न जावे पाल्या॥ ट ॥
बान्भ्या थानक पकड़ा ठिकाना रे, गृहस्था घु' मोह बंधानां ।
सुख सिलिया सता कारी रे, इव्या साध रो मेष धारी॥&॥
ए सकण इगुरुंरा जाणो रे, उत्तम नर हृदय पिछानो।
देव गुरु मेँ खोदा जिम धारथ रे, तिरे छे संसार ज्यादा ॥१०॥ -
, एवा नें शुरु करने पूजे रे, समकित बिन संबलो न सूझे ।-
तिखरो छे भारी कर्मों रे, ते - किम ओलखे , निन धर्मों ॥११॥'
कुगुरां री काली पषपातों रे, -त्यां ने न्याय री न गमे बातो)
बुध उलटी न मूठ मिटाती रे, साघु बचन सुन्यां अले चाती ॥१२॥
धनायो सेट बेटी ने खायो रे, शले राजगिरी श्रायो।,
इम करसी साधु आहारो रे, तो पहु वसी. शक्त मंभारो ॥१३॥
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