माता | Mata

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Mata  by श्री अरविन्द - Shri Aravind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाता रहती ह जिनके हाथमे ये न रहनी चाहिये और इन लोगेकि द्वारा इन शक्तियाका वडा ही दुरुपयोग होता है । धनके चाहनेवाटे या धनके रखनेवाठे प्रायः धनके अधिकारी नदीं वल्कि धनके अधिकारमं ( वशम ) रहनेबे हेते है; धनको असुरोने जो इतने कालसे अपने कन्जेंगें रखा है और इसका दुरुपयोग किया है, उससे धनपर उसकी ऐसी आसुरी छाप पड़ी हुई है कि इसके विकृत करनेवाले प्रभावसे पूरे तौरपर शायद ही कोई वचता हो । इसीलिये अनेक साधन-मार्गोंमं धनके विपरयमे वदे संयम, अनासक्ति ओर लागका कडा नियम है और धन रखनेकी वैयक्तिक ओर अहंकारयुक्त इच्छका यडा निपेध है | कुछ तो धनको छना ही पाप समन्ते है और दृद्िता एवं अपरिप्रहको ही एक मात्र, अध्यात्म- जीवनकी अवस्था मानते हैं। पर यह भूल है, इससे यह राक्ति दानवी शक्तियेके ही हाथमे रह जाती है । सारा धन ईश्वरका है और साधकके छिये श्रेष्ठ परावुद्धिका मार्ग यही है कि ईश्ररके ढिये इसे फिर जीत ले और दैवी पद्धतिसे देवी जीवनके लिये इसका उपयोग करे । न १५




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