शेष स्मृतियाँ | Shesh Smritiyaan

Shesh Smritiyaan by आचार्य रामचंद्र शुक्ल - Aacharya Ramchandra Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= १० ~ प्र्ल--कौर दसरी '्ोर अवसाद. नगश्य ओर उदासी सामने या । इनिटास-मसिद्ध चडे-चड अत्पपी सम्राटो के जीवन को लेकर थी बह ऐसा ही करेगा । उनके तेज. प्रताप; परक्रम; इत्यादि की भावना शह इतिदास-विज्ञ पाठक की सहदयता पर्‌ खड दगा । अपनी पुरतझ में सदाराजकुमार ने अधिकाश में जो जीवन के भोग- पच्च का दी अनतिक विधान किया दै उसका कारण ममे यही प्रतीत होता ह । दमी से मदर चर 'प्याले' वार वार सामने आण् है जो केगी किसी को खटक सकते ह | ने की आवश्यकता नहीं सुख ओर ट ख के वीच का नपय जैसा सर्िक चोर हुदयम्पर्शी होता ह बेसा ही उन्नति ओर अवनते, पतप व्र हामि के बीच का भी ] टम चपम्य-प्रदगुन के लिर एक आर तो किसी के पतन-काल क प्रसमर्थ्यं द्रीनत, विव- एद; उदासीनना इत्यादि के दृश्य सामने रखे जाते है, दूसरी और उसके णसकाल कृ परता. तेज, परक्रम उल्यादि के चत्त स्मरण किए जाते है । प्रस्तुत पुस्तक मे दिल्ली के किले के प्रसंग म शाह- आलम, उुहम्मदशाह श्रे वहादुर्शाह के चुरे दिनों के चुने चित्र दिखा वर जो गूद और गभीर प्रभाव डाला गया है उसे हृदय के दर यहराइ तक पहुँचाने वाली चस्तु हे अकबर, शाहजहों, औारग- जेब आदि बादशाही के तेज. प्रताप आर पराक्रम की भावना । पर जता कि कहा जा चुका है भावुक लेखक ने इस भावना को पायः व्यक्त नहीं किया है, उसे पाठक के अन्तःकरण में इतिहास द्वारा प्रतिष्ठित मान लिया है | वात यह है कि सम्राटों के मभुस्र, प्रताप, अधिकार इत्यादि =




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