प्रबंध प्रभाकर | Prabandh Prabhakar

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Prabandh-prabhakar by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य का कया लक्ण दै ग्रौर उसका मानव-जीवन से क्या सम्बन्ध रै ११३ से उच्चकोटि के निबन्ध लिखने में बहुत कुछ सहायता मिलेगी | लेखक ने भी इन ग्रन्थों में से बहुत से ग्रन्थों से लाभ उठाया है | उनके सुयोग्य लेखकों के ग्रति कृतजता प्रकाशित करता हुमा लेखक इस लेखमाला को विद्यार्थियों के द्ाथ सौंपता है । आ्राशा है कि वे त्रपने सानसिक विकास में सहायता लेकर य्रधोचित लाभ उठाएंगे और उसके परिश्रम को सफल करेंगे | जि कक पलट... लव, १, काव्य का क्या लचण है और उसका मानव-जीवन से क्या सम्बन्ध है ? यद्यपि काव्य की यथार्थं परिमापा देना कठिन है, क्योंकि इसके सम्बन्ध में श्राचार्यों में बहुत मतभेद हैं, तथापि इतनी बात श्रवश्य कह्दी जा सकती है कि उसका उदय सानव-छुदय में होता है श्रौर घह मानवनहृदय को प्रभावित कर श्रानन्द का उत्पादक दोता है | “काव्य कया है ?” इसके उत्तर में केवल इतना कहना पर्याप्त दोगा कि मनुष्य से भावात्मक सम्बन्ध रखनेवाले श्रनुभवों की श्रानन्द प्रदाधिनी सुन्दर शुन्द-मयी द्रभिव्यक्ति को काव्य कहते हैं । काव्य मे भाव का प्राघान्य रहता है । धोड़ी सामग्री में बहुत-से भावों को व्यजित कर देना काव्य का बाहरी लक्षण दै । कविता का मानव-जीवन से विशेष सम्बन्ध दे । उसका दृष्टिकोण दो मानवीय है । काव्य उन्हीं अनुभवों को लेना हें जिनका कि मनुष्य से भावा.मक स्वेधर | यद चात काव्य शरोर विजान करा टरिटिकोणु- वेट बतला देने से श्रौर भी स्पष्ट हो जायगी | विजान जिस चम्तु यो देखता है उसको वैसा ही कहता है. उसके लिए सुन्दर श्रौग ्रनुन्दग कुछ नहदीं । जल ्ोपजन (0558९) योर उदनन (ता०छ्छाा)




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