राजस्थान के अज्ञात बृजभाषा साहित्यकार भाग ५ | Rajasthan Ke Agyat Brajbhasha Sahityakar5

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Rajasthan Ke Agyat Brajbhasha Sahityakar5 by मोहनलाल मधुकर - Mohanlal Madhukar

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लेखक व साहित्यकार का परिचय
नाम - मोहनलाल मधुकर

जन्मतिथि- 13 अगस्त, 1936

पिता- पं. भँवर सिंह, व्यवसाय-कृषि

माता- श्रीमती कम्पूरी देवी, सद्गृहिणी

जन्म स्थान- ग्राम धौरमुई, जिला-भरतपुर (राजस्थान)

शैक्षणिक योग्यता- एम. ए. (हिन्दी), एम.एड.

पत्नी- श्रीमती निर्मला देवी, सद्गृहिणी

पुत्र- 1. डॉ. महेश कुमार शर्मा एम.डी. (आयुर्वेद), एसोसिएट प्रोफेसर राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर
2. अनुराग मधुकर एम.एस.सी. कृषि सांख्यिकी (स्वर्णपदक प्राप्त), कम्प्यूटर प्रोग्रामर राजस्थान सचिवालय, जयपुर
3. आदर्श मधुकर, एम.ए. (हिन्दी) बी.एड., सर्टीफिकेट कोर्स इन कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, एम.जे.एम.सी., विशेष संवाददाता

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 की हिमायती है । घिसी पिदी लकोरनपं चलबौ सोचौही नाहि। स्वना लिखी हैं तौ युगावुरूप लिखी है । नए नए विसंन पै लिसी है, रावाकृष्ण साहित्य कौ अनुराभिनी हैं पर युगधम कु नाय भुलायौ। पर्यावरण सौ सर्म्बा घत एक छद मे पेडनकी रखबारी के ताई अप्रत्यच्छ रूप सौ यो सदेसौ दियौ है -- सूखन रूख लगे चहु ओर, भयौ अपति सोर सवं बिललाने। पर पच्छो इरे चहु ओर मरेनरनारि भौ बाल फिर बितलाने । विन पानी कहौ कंसं जीव वरे इहरं हियरे मन मे विचलान। अकालतो लीलि गयौ सिगरौ उजरयौ जब बाग तौ का पछूताने ॥। याहि तरिया रष्टरीय सरोक्ारन म परिवार कल्यान कौ मृहौ कितेक महत्वपूण है । याकौ आभास सबन नै है पर बिना विचारे सतति बढायबे बारे अ त में पढछताबे याकौ एक रूप यो दिखायौ है त्रिपाठी जी नै-- कबौ आटो चुकौ, कबो दार चुकी, दधि दूध सिठाई कह न दिखाने । कबौ पोधी नही, कबो बस्तौ नहीं कबौ फीस नहीं सो रहै खिसियाने । घरवारीहै रारि मचायरही कसं कीजे गुजारी घर नहीं दाने । सतान को भीर भरी घर में तब चूकि गए अब का पढछताने ॥। राष्ट्रीय सरोकारन के सग स्थानीय विविधतान कु त्रिपाठी जी ने उभारी है । भरतपुर प्रवास मे घना पच्छी विहार के पाहूनेन कौ कथन देखबे जोग है-- हिम रासि अनत दिगत छई, तह जीवन रेख परे न दिखाई । कहु॒ रूख न दूब हरेरी कहु, सरिता सर नाहि परे दिखराई । तरवारी की धारि ज्यो नागै बयारि, गौ ओलनमार बडी दखदाई । तब कान मे एसो सदेसौ परयो चलिए दिसि दच्छिन जुथ बनाई ।! साइमेरिया सौ लम्बी यात्रा करबे वारे पच्छीन कै मनकी बात कु त्रिपाठी जी ने पढो है । उनके दरद कु समझी है । पच्छीन की मन स्थिति कू जान कें उनकी भोर सौ जो निवेदन कयौ है ब मानवीय पच्छ कु उजागर करे बारौ है- हेम पाखी निवासी विदेसन के, इत भर है सीत बिताबन कारन । ननन मे सुपनेन सजोयकं, जोरी बनाई उडे दिन रातन । मग कौ उत्पात न जात सहै, पन लच्छं सौ कोऊ सव्यो नाहि रारन । सतति को सुख सृस्टि कौ सार, सो आए है नीड वनावन कारण ।




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