शिशुपालन | Shishu Paalan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वैद्यराज श्री अत्रिदेव गुप्त विद्यालंकर- Vaidyaraj shri Atridev Gupt Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० शिशु-पालन
वषं से भी पूवं की) है। कारण, उन्हें इसके लिये सूत्र बनाने
पड़ हे । यथा “च्चात्रेयगाग्यःः' आदि।
नेपोलियन के कार्यों को देख-सुनकर उसकी उत्पत्ति का
इतिहास जानते की इच्छा रखना मनुष्य-मात्र के लिये
स्वाभाविक हे ।
इसके अतिरिक्त पुत्र से जहाँ दंपति को वेयक्तिक लाभ है,
वहाँ देश और जाति को भी अति लाभ है। इसलिये किसी
ने कहा।है कि शिशु रा के पिता ( (ते 15 प्ल शाल
+ ०, ५, बल
0 772६107 ) हाते ह ।
जिस देश मे जितने अधिक शिशु।हागे;, वह देश उतना ही
देश्वयंशाली, शिक्ञा मे उन्नत, सौभाग्यवान् ओर शक्तिशाली
होगा । कारण,
= [| (^. | ५ मर
१, उस देश में अधिक संन्य-शक्ति प्राप्त हो सकती ह ।
र. क्षेत्र के विस्तृत होने से उत्तम मस्तिष्क का होना
दी
संभव हे ।
३, जन-संख्या की व्रद्धि के कारण वह देश व्यापार में सबसे
बढ़ सकता है । चह देश संपत्तिशाली होगा क्र । इन वाक्यों की
सत्यता इटली के राष्ट्पति, वतमान काल के नेपोलियन,
मुसोलिनी की पघ्रोषणा से प्रमाणित है । उसने अविवाहितों
स नाव ~ ~--
# इसमें देश की स्वतंत्रता भी श्रवश्य श्रपेद्धितदै । उदाषस्थ
के लिये भारत श्रोर इटली की तुलना की जा सकती है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...