शिशुपालन | Shishu Paalan

Shishu Paalan by वैद्यराज श्री अत्रिदेव गुप्त विद्यालंकर- Vaidyaraj shri Atridev Gupt Vidyalankar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वैद्यराज श्री अत्रिदेव गुप्त विद्यालंकर- Vaidyaraj shri Atridev Gupt Vidyalankar

Add Infomation AboutVaidyaraj shri Atridev Gupt Vidyalankar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
० शिशु-पालन वषं से भी पूवं की) है। कारण, उन्हें इसके लिये सूत्र बनाने पड़ हे । यथा “च्चात्रेयगाग्यःः' आदि। नेपोलियन के कार्यों को देख-सुनकर उसकी उत्पत्ति का इतिहास जानते की इच्छा रखना मनुष्य-मात्र के लिये स्वाभाविक हे । इसके अतिरिक्त पुत्र से जहाँ दंपति को वेयक्तिक लाभ है, वहाँ देश और जाति को भी अति लाभ है। इसलिये किसी ने कहा।है कि शिशु रा के पिता ( (ते 15 प्ल शाल + ०, ५, बल 0 772६107 ) हाते ह । जिस देश मे जितने अधिक शिशु।हागे;, वह देश उतना ही देश्वयंशाली, शिक्ञा मे उन्नत, सौभाग्यवान्‌ ओर शक्तिशाली होगा । कारण, = [| (^. | ५ मर १, उस देश में अधिक संन्य-शक्ति प्राप्त हो सकती ह । र. क्षेत्र के विस्तृत होने से उत्तम मस्तिष्क का होना दी संभव हे । ३, जन-संख्या की व्रद्धि के कारण वह देश व्यापार में सबसे बढ़ सकता है । चह देश संपत्तिशाली होगा क्र । इन वाक्यों की सत्यता इटली के राष्ट्पति, वतमान काल के नेपोलियन, मुसोलिनी की पघ्रोषणा से प्रमाणित है । उसने अविवाहितों स नाव ~ ~-- # इसमें देश की स्वतंत्रता भी श्रवश्य श्रपेद्धितदै । उदाषस्थ के लिये भारत श्रोर इटली की तुलना की जा सकती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now