जैन - सिद्धान्त - भास्कर भाग - 8 | Jain-siddhant-bhaskar Bhag - 8

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Jain-siddhant-bhaskar Bhag - 8 by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रुक्णुदेल्फोछ के शिठादेखों में मोगो डिक नाम [ले० श्रीयुत वा० कामता प्रसाद जैन, प्म० झार० ए० एस० ] ( क्रमागत ) दिल्लि-१४१ समबत भारत दी राजधानी दिल्ली का द्योतक है। दिल्ली का प्राचीन नाम इद्रमस्थ है। चदद पाइवां की राजधानी थी । गो के अन्तिम हिन्दू राजा एप्वीराज चौहान थे । मुसनमाना ने दिल्ली को कई दके लूटा था ्औौर मदिर्रा प्य मूर्तियों को नप्ट किया था। छुतुममीनार के पास जो मस्जिद घनी हुई है, वदद २७ द्विदू व जैनमदिरों वो तोड़ कर पनाद्‌ गई थी |. (इस्पीरियल मैनेटियर 'ॉव इंडिया २1१२६) 'छाज मी यहाँ खडित जिनमूर्तियों पडी हुई हैं ।३० दोरसपुद्र (ढारायती)-- ४५, ५३, ५६, ९०, १२०, १८४४, ३६०, ४८६ ४९७ इसादि। दोयूसा नरेशों की गजधानी थी। दोयूसन राजयश के प्रतापी राजा सिण्णुगद्वन ने दोश्सम्ुर में राजधानी स्थापिन की थी | यह घय श्रौर उनकी महारानी सान्त द्वी सैनधमे के उपासक थ। यद्यपि उपरान्त पिए्णुब्रद्ध॑न चैप्णय ो गये थे परतु फिर भी वह जैनों को दान दते रहें यें। उनकी रानी श्रन्त समय तर जैनी रदी था । उदाने श्रनेक सुद्र जिनमदिर प्रर मृततियो निमी वरद था । निस्मन्ू्द्‌ दोरसमुद्र जैनधम का सुरव कद्रथा। वहं राजा श्र प्रता दोना न मि7कर जैनधमे पौ उनत वनाया वा| विष्णुर्न कै मुख्य मेतापनि दडनायर गह्गराज थ। वद द्वारासमुद्रमे रहते यश्चौर जैनधर्मै कस्तम थे। उदा दता शधि निनमदिर यनयाये च्रौर पुरानाका जीर्णोद्धार कराया फि समूचा गद्गगाडि प्रल्श, जिस पर वह शासन कसे य, पोप तीयै कौ तरद्‌ चमक उडा। दोरसमुदर मे भी ठाने जिनमरिर बनवाया धा। उनके पुय घोप्पन भो सनापतिथे। उदाने प्रप पिता वी स्मृति में ्रोदस्थरट्जिना यः नामक एक मनोहर महिर दोरसमुद्र में बनवाया था श्रीर उमम पादुमेनाय मयमान्‌ फी मनोज्ञ प्रतिमा पिरजमान वी थी। इस समयं पिणणुयद्ध न नरेश एय घ्र पर गिन पारर उस म दूर में नशैन करन नाय | उ-ष्ान श्रपनी प्रियः क पाक्त मे मगन था गाम पिजय पादैः सत्वा शरीर उसी समय जो उनकं पुम + दान हो स-गत २४ ५ देश का जब से हदलो गया था नर श्रोसानु था राउएरूणतो वे साथ कतुदमीनार देन गया था। मानारषप यवन म लौह स्त्म थे शाम्य चा भगनावधप द कषम म्द युट्‌ दि भरदिहर दया में वतमान ्यनकः न सूया श्छ सन्‌ स्व्यं दला | यनि कम मूर्तियों फ फोरो भेजने फ लिए से वार राजहप जी स कर ध्ाया हूँं। देहनी से फारा 'याने पर मास्तर था फिसी '्रागामी फिरिण में लत कोटा को मैं 'घवस्य हाय दूँगा।... -फब्भुगवनी शास्री




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