पड़ोसी | Padosi

Padosi by केशवदेव - Keshavdevसुधांशु चतुर्वेदी - Sudhanshu Chaturvedi

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सुधांशु चतुर्वेदी - Sudhanshu Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पड़ोसी १७ मंगलब्दोरी घराना मुक्कोणबक रा के उत्तर-पूर्वी कोने पर है । मंगल- इदेरी के बव॑ को प्लोर से ही मुक्कोणक्करा से शहर का मागे जाता है। उसके पास ही मलयालम पाठशाला, कचहरी श्रोर डाकघर हैं । मुक्कोणक्करा का सबसे उचा प्रदेश वही है । लोगों का विश्वास है कि चाहे जितनी बडी बाढ़ प्राये, उधर पानी नहीं चढ़गा । इसलिए जिनकी भोपड्ां बाढ में बह गड श्रौर जिनके घरों में पानी भर गया था, उन सभी ने पाठशाला शभ्रथवा कचहरी में शरण ली थी । पद्मनाम पित्ल ने जब यह्‌ सुना कि पच्चाषौ वालों तथा मंगन्शेरी वालो की मेड टूट गई है शभ्ौर पानी का चढ़ाव भ्रब भी रुका नहीं है, तब उनकी चिन्ता बढ़ गई । कुड्मुवरीत रौर उसके कुटुम्ब की दशासे उन्होंने बाढ़ की यातनाभ्रों का श्रनुमान भी कर लिया था । इसीलिए ठंडी हवा की परवाह क्रिये बिना छतरी लेकर वे बाहर निकले थे । फाटक से भ्रागे बढ़कर दक्षिण की तरफ उन्होंने दृष्टि डाली तो देखा कि पाठशानाके सामने बड़ी भीड़ है । सिर ऊचा करके रृढ़ चरणों से वे प्रागे बढ़ । पाठशाला के नज़दीक पहुंचते ही दोनों तरफ की सहमी हुई मीड ने भुककर उनको प्रणाम किया । पाठशाला प्रौर कचहरी के बरामदे मे ठंडी हवा से ठिठुरने वाले लोगों ने भी उठकर उन्हें प्रणाम किया । बाढ़ के मीषण ध्राक्रमण से जान बचाने के लिए भाग भश्राये थे वे सभी लोग । उनमें ऐसे भी लोग हैं, जिनके जो कुछ हाथ लगा, उसे लेकर भाग प्राए है; कुछ लोगं सभी कर खोकर सिफ़ं जान वचाकर भागे हृए भी है । पानी में तरकर मीगे वस्त्रों से किनारे पर श्राए हुए लोग भी है । कोई भी कुछ नहीं बोला । एकदम धागे बढकर कण्डम्पुलयन कुछ कहने को उद्यत हुप्रा । पद्मनाभ पिल्‍्ले ने पूछा, व्या है कण्डा ?. 'हम लोग”*”' कण्डम्पुलयन फूट-फूटकर रोने लगा । पीछे मुड़कर पद्मनाम फिल्‍्ल ने कुञ्जन से कहा, कूञ्जा, बखारी का




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