राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी | Rashtrabhasha Hindustani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ राष्टुभाषा हिन्दुस्तानी
यानी पढ़े-लिखे हिन्दू हिन्दीको केवल संस्कृतमय बना डालते हैं । नतीजा
यह होता हैं कि कभी मुसलमान झुसे समझ नहीं पाते । लखनअूके
मुसलमान भाओ फ़ारसीमय अदू बोकर असे असी शक्ल दे देते हैँ कि
हिन्दू समझ न सकें । ये दोनों परभाषा हैं, और आम जनताके बीच
शिनकी कोओी जगह नहीं । मैं अुत्तेरमें रहा हूँ, हिन्दुओं और मुसलमानों के
साथ -खूब मिला हूँ, और हिन्दी साषाका मेरा अपना ज्ञान बहुत कस
होने पर भी झुनके साथ व्यवहार करनेमें मुझे ज़रा भी अड्चन नहीं हुआ है ।
अुत्तरी हिन्दुस्तानमें जिस भाषाकों वहाँका जन-समाज बोलता है, झुसे
आप चाहे अदू कं, चाहे हिन्दी, बात अक ही है । झु्दू लिपिमें लिखकर
झुसे झुदूके नामसे पहचानिये, और झुन्हीं वाक्योंको नागरीमें लिखकर
झुसे हिन्दी कह लीजिये ।
अब रहा सवाल छिपिका । फ़िलहाल मुसलमान लड़के रूर ही अद
लिपिमें लिखेंगे । हिन्दू ज्यादातर देवनागरीमें लिखेंगे । “ ज़्यादातर * शब्दका
प्रयोग भिसलिमि कर रहा हूँ कि हजारों हिन्दू आज सी अपनी हिन्दी
यदू चिपिमे लिखते हैं, ओर कुछ तो जैसे हैं, जो देवनागरी लिपि जानते
भी नहीं । आखिर जब हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच शंकाकी थोड़ी भी
दृष्टि न रहेगी, जब अविश्वासके सब कारण दूर हो चुकेंगे, तब जिस
लिपिंमें दाक्ति रहेगी, वह लिपि ज़्यादा लिखी जायगी और वह राष्ट्रीय
लिपिं बनेगी । भिस बीच जिन मुसलमान और हिन्दू भाभि्योको अदू
लिपिमें अर्जी लिखनेकी जिच्छा होगी, झुनकी अरज्ञी राष्ट्रके स्थानमें क़बूल
की जायगी--की जानी चाहिये ।
पोच लक्षण धारण करनेमे हिन्दीकी होड करनेवाली दूसरी कोओी
भाषा नहीं । हिन्दीके बादका स्थान बैंगलाकों प्राप्त है । तिस पर भी
बेगाली भाओ बंगालके बाहर तो हिन्दीका ही झुपयोग करते हैं । हिन्दी
बोलनेवाला जहँ जाता है, वहाँ हिन्दीका ही झुपयोग करता है, और अुससे
किसीको आइचये नहीं होता । हिन्दी बोलनेवाले घर्म-प्रचारक और खुर्दके
मौलवी . सारे दिन्दुस्तानमे अपने व्याख्यान दिन्दीमे ही देते है, ओर
अनपढ़ जनता सी यसे समन्न ठेती है । अनपढ़ गुजराती भी झुत्तरमें
जाकर हिन्दीका थोड़ा-बहुत जिस्तेमाल कर लेता है, जब कि अुत्तरका
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