साहित्य दर्शन | Sahitya Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ज ) करिया गया जो उसकी सीमा के विधायक है श्रौर जिनके विना साहित्य श्रपनी संशा ही नहीं प्राप्त करता । यह एक प्रकार की श्रुटि भी है, किन्तु इसका कारण ऊपर ब्ताया जा चुका है। इस त्रुटि की पूर्ति भी लेखक ने श्रपनी तुलनात्मक श्रौर व्यावहारिक समीक्षात्रों में श्रच्छी तरह कर दी है। आब हम उन्हीं की श्र श्रागे बढ़ते हैं । त्रारम्भ में ही कह चुका हूँ कि नवीन श्रालोचना श्रभी पूणणतः शास्त्रीय स्वरूप नहीं धारण कर सकी है, श्रबतक उसकी कुछ प्रवृत्तियां ही प्रत्यक्ष हुई हैं । इन प्रवत्तियों के ही श्राधार पर हमें नवीन समीक्षा के रंवरूप का परिचय मिल सकता है। ऊपर मैंने इसके मूलभूत मनोवेज्ञानिक भौर श्राध्यास्मिक स्वरूप का उस्लेख कियाटहै। श्व यहाँ हमें उन सूत्रों की योर दृष्टिपात करना होगा जिसके श्राधार पर समीक्षा का यह स्वरूप प्रतिष्ठित हौ सका है। संत्तेपमेंहम नई समीक्षा के साध्य को देख चुके,श्रब साधनों की ओर दृष्टि डालनी होगी । सबसे पहले यह बात दिखाई देती है कि नवीन समीक्षा रस श्रौर -श्रलड्टार की शैली को छोड़ स्वतन्त्र माग ग्रहण कर चली है । श्राचार्य रामचन्द्र शुक्र यद्यपि इस प्राचीन समीक्षा-परम्परा का यथेष्ट परिष्कार भी कर गए श्र उसकी संभावनाश्रों का उज्वल चित्र भी दिखा गए किन्तु नवीन समीक्षकों ने इसका अधिक उपयोग नहीं किया । इसका कारण यह नहीं था कि नवीन समीक्षक इस परम्परा से श्रपरिचित थे किन्तु स्वच्छन्द श्रनुभूति प्रवाह श्रौर श्रभिव्यक्ति सौष्ठव के प्रत्ययो में रस श्रौर श्रलङ्कार परम्परा के बाह्य वर्गीकरणों को भूल ही गए । उनका ध्यान सासृतिक मनोभावनाश्रों श्रोर उनकी मनोरम श्रभि-




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