पउमचरिउ पद्मचरित भाग 3 सुन्दरकाण्ड | Paumchariu Padamcharit Bhag 3 Sundarkand
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तियालीससो संधि ७
[४ ] यहं नकर विराधितने हर्पपूर्वंक कहा; “भीतर ले
आओ । सचमुच मैं धन्य हुआ कि जो किष्किधानरेश, स्वयं
अभिसान छोड़कर मेरी शरणमें आये ।” तब सम्मानित होकर
दूत वापस गया ओर आनन्दके साथ अपने स्वामीकों लेकर फिर
आया । इतनेसें तूथे-ध्वनि सुनकर राघवने विराधितसे पूछा;
“सेना छेकर यह कोन रोमांचित होकर आता हुआ द्ीख पढ़ रहा
है ।” यह सुनकर, नेत्रांनडदायक चन्द्रोदर पुत्र विराधितने कहा;
कि सुप्रीव और चाछि ये दो भाई-भाई हैं । उनमेंसे वड़ा भाई
संन्यास ठेकर चखा गया है । ओर इसको किसी दष्टे पराज्य
देकर चनवासर्म डा दिया ह 1 यद्; सूररवका पुत्र; घिमछमति
ताराका खामी ओर वानरष्वजी, वदी सुप्रीव है जिसका नाम
कथा-कहानियोमे सुना जाता है ।1१-६॥
[५] इस प्रकार राम-छदमण और विराधितमे वाते हो ही
रदी थीं कि इतनेमें उन्दोने सुप्रीवको वैसे दौ देखा जैसे आगम
त्रिखोक ओर धिका को देखते हैं । आते हुए वे ऐसे ठगे मानों
चारो दिग्गल एक साथ सिछ गये हो । जाम्चवन्तने उन्हे चैठाया ।
तद्नन्तर आदर पूर्वक छदष्मणने सुमरीवसे पूछा कि तुम्हारी पत्नी
का अपददरण किसने किया । यह् सुनकर जास्व्रवन्त अपना माथा
शुक्राकर सारा वृत्तान्त सुनाने र्गा । (उसने कहा) कि जब सुग्रीव
वनक्रीडा करनेके लिए गया था तो साया सुमीव उसके घरसे घुस-
कर बेट गया । वाटिका अनुज सुप्रीव जव अपने मन्तियोके साथ
घर छोटा तो कोई भी यह् पचान नदीं कर सका कि उन दोनोंमें
असी राजा कीन है. । सबके मनमे आशय हो रहा था । इतनेमे
कुतृूहल-जनक दो सुप्रीव देखकर; असली सुप्रीवकी सेना हपसे
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