पउमचरिउ पद्मचरित भाग 3 सुन्दरकाण्ड | Paumchariu Padamcharit Bhag 3 Sundarkand

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Paumchariu Padamcharit Bhag 3  Sundarkand by देवेन्द्र कुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तियालीससो संधि ७ [४ ] यहं नकर विराधितने हर्पपूर्वंक कहा; “भीतर ले आओ । सचमुच मैं धन्य हुआ कि जो किष्किधानरेश, स्वयं अभिसान छोड़कर मेरी शरणमें आये ।” तब सम्मानित होकर दूत वापस गया ओर आनन्दके साथ अपने स्वामीकों लेकर फिर आया । इतनेसें तूथे-ध्वनि सुनकर राघवने विराधितसे पूछा; “सेना छेकर यह कोन रोमांचित होकर आता हुआ द्ीख पढ़ रहा है ।” यह सुनकर, नेत्रांनडदायक चन्द्रोदर पुत्र विराधितने कहा; कि सुप्रीव और चाछि ये दो भाई-भाई हैं । उनमेंसे वड़ा भाई संन्यास ठेकर चखा गया है । ओर इसको किसी दष्टे पराज्य देकर चनवासर्म डा दिया ह 1 यद्‌; सूररवका पुत्र; घिमछमति ताराका खामी ओर वानरष्वजी, वदी सुप्रीव है जिसका नाम कथा-कहानियोमे सुना जाता है ।1१-६॥ [५] इस प्रकार राम-छदमण और विराधितमे वाते हो ही रदी थीं कि इतनेमें उन्दोने सुप्रीवको वैसे दौ देखा जैसे आगम त्रिखोक ओर धिका को देखते हैं । आते हुए वे ऐसे ठगे मानों चारो दिग्गल एक साथ सिछ गये हो । जाम्चवन्तने उन्हे चैठाया । तद्नन्तर आदर पूर्वक छदष्मणने सुमरीवसे पूछा कि तुम्हारी पत्नी का अपददरण किसने किया । यह्‌ सुनकर जास्व्रवन्त अपना माथा शुक्राकर सारा वृत्तान्त सुनाने र्गा । (उसने कहा) कि जब सुग्रीव वनक्रीडा करनेके लिए गया था तो साया सुमीव उसके घरसे घुस- कर बेट गया । वाटिका अनुज सुप्रीव जव अपने मन्तियोके साथ घर छोटा तो कोई भी यह्‌ पचान नदीं कर सका कि उन दोनोंमें असी राजा कीन है. । सबके मनमे आशय हो रहा था । इतनेमे कुतृूहल-जनक दो सुप्रीव देखकर; असली सुप्रीवकी सेना हपसे




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