वीर पाठावलि | Veer Pathavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ ऋपभदेव ओर भरतः
दी गई थी । इस तरह त्राह्मी ओर सुदरीको भगवानने ` आदश स-
णित्रां बना दिया था । यद्यपि पिताके घरमें उन्हें सब तरहका आराम
था ओर स्वल रूपसे उन्हें संपत्तिमें भी समान अधिकार प्राप्त था; किंतु
दुनियांका नाच-रं उनके लिये फूटी कौड़ी वरावर था । वे आजन्म
त्रह्मचारिणी रहीं और सावैजनिक हितके कामोंमें ही अपना जीवन विता
दिया । महिला महिमा और ल्री-शिक्षाका महत्व उनके व्यक्तिततमें,
मृतिमान हो आ खड़ा हुआ ।
ऋषभदेवजीने भरत और वाहुवलि आदि अपने सब ही पुर्नोंकों.
भी खूब पढ़ाया लिखाया था और जब वे पढ़-लिखकर होशियार और'
अनूठे स्वास्थ्यके धारक युवा होगये थे, तब उनकी इच्छानुसार विवाह
हुये य॒ । भरतने कानून और राजनी तिमें विशेषज्ञता प्राप्त की थी 1
तथा नृत्य-कटामें भी वह खूब दक्ष थे । उनके छोटे भाइयोंमिं वाहु-
वकि मछ सौर ज्योतिप विद्यामें तथा रत और आयुर्वेद शाखों में
निप्णात थे । गृपभसेन संगीत शासे जता थ । अनन्तवीर्यैने
नाय्यकामें क्षमता पाई थी । इसीप्रकार अन्य कुमार भी विद्यावान
सुशिक्षित थे । ऋषभदेवजीन इन्हें देश-रक्षाके लिये विभिन्न पर्दो पर
नियुक्त कर दिया था ।
इस प्रकारके सुखी और प्रतिष्ठित कुटटस्बमें ऋषभदेवजी एक
दीघे समयतक रहे। किंतु एक रोज जब वह राजदरबारम चठ नीसं-
जना नामक देव-अप्सराका दृत्य देख रहे थे कि उन्हें संसार असार'
नज॒र पढ़ने ठंगा । वह अप्सरा नाचते-नाचते ही मर गई । ऋपभदे-
वने शरीरकी क्षणभेगुरताका ध्यान करके उसे आत्हितमें लगाने और
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