वीर पाठावलि | Veer Pathavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Veer Pathavali by कामताप्रसाद जैन - Kamtaprasad Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कामताप्रसाद जैन - Kamtaprasad Jain

Add Infomation AboutKamtaprasad Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ ऋपभदेव ओर भरतः दी गई थी । इस तरह त्राह्मी ओर सुदरीको भगवानने ` आदश स- णित्रां बना दिया था । यद्यपि पिताके घरमें उन्हें सब तरहका आराम था ओर स्वल रूपसे उन्हें संपत्तिमें भी समान अधिकार प्राप्त था; किंतु दुनियांका नाच-रं उनके लिये फूटी कौड़ी वरावर था । वे आजन्म त्रह्मचारिणी रहीं और सावैजनिक हितके कामोंमें ही अपना जीवन विता दिया । महिला महिमा और ल्री-शिक्षाका महत्व उनके व्यक्तिततमें, मृतिमान हो आ खड़ा हुआ । ऋषभदेवजीने भरत और वाहुवलि आदि अपने सब ही पुर्नोंकों. भी खूब पढ़ाया लिखाया था और जब वे पढ़-लिखकर होशियार और' अनूठे स्वास्थ्यके धारक युवा होगये थे, तब उनकी इच्छानुसार विवाह हुये य॒ । भरतने कानून और राजनी तिमें विशेषज्ञता प्राप्त की थी 1 तथा नृत्य-कटामें भी वह खूब दक्ष थे । उनके छोटे भाइयोंमिं वाहु- वकि मछ सौर ज्योतिप विद्यामें तथा रत और आयुर्वेद शाखों में निप्णात थे । गृपभसेन संगीत शासे जता थ । अनन्तवीर्यैने नाय्यकामें क्षमता पाई थी । इसीप्रकार अन्य कुमार भी विद्यावान सुशिक्षित थे । ऋषभदेवजीन इन्हें देश-रक्षाके लिये विभिन्न पर्दो पर नियुक्त कर दिया था । इस प्रकारके सुखी और प्रतिष्ठित कुटटस्बमें ऋषभदेवजी एक दीघे समयतक रहे। किंतु एक रोज जब वह राजदरबारम चठ नीसं- जना नामक देव-अप्सराका दृत्य देख रहे थे कि उन्हें संसार असार' नज॒र पढ़ने ठंगा । वह अप्सरा नाचते-नाचते ही मर गई । ऋपभदे- वने शरीरकी क्षणभेगुरताका ध्यान करके उसे आत्हितमें लगाने और




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now