नटनागर विनोद | Natnagar Vinod

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Natnagar Vinod by कृष्णविहारी मिश्र - Krishnavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ ) जीवन का बहुत समय व्यायाम ओर आखेट मे बीता! इनके शरीर में खूब पराक्रम था। मुगदर फेरने का इनको बहुत चाव था । पचीस वषं की अवस्था तक इन्होने पूणेरूप से बरह्मचर्यं की रक्ता की । सीतामऊ में इनके शारीरिक बल की अनेक वाते विख्यात हैं। कहते हैं कि कच्चे रुपये पर उभड़े हुए अक्षर ये अँगूठे से मलकर विगाड़ देते थे ओर उसे अँगुलिया से दबा कर टेढ़ा भी कर देते थे । केसी भी तलवार हो एक ही हाथ से बकरे के दो टुकड़े कर डालते थे! शिकार में एक बार इन्होंने एक बहुत वड़ा छः मन का वजनी सुअर मारा, साथ के शिकारियों में से अकेले किसी एक आदमी के उठाये वह नहीं उठता था । इन्होंने अकेले ही उसको उठाया और कुछ दूर तक लिये चले गये । एक वन्दूकर की नाल को इन्होंने अपने हाथ से तोड़ डाला था । निशाना भी ये बहुत अच्छा लगाते थे । कई बार 'अँधेरे में शब्द सुनकर भी इन्होंने लच्य को सार गिराया । जिस स्थान पर ये खड़े होकर मुगदर फेरते थे वहाँ पत्थर में इनके पेरों के चिह्न वन गये थे । शरीर-बल के अनुसार ही इनका भोजन भीथा प्रसिद्ध तो यह है कि ये प्रतिदिन प्रायः सवा चार सेर सूखा मेवा चाव डालते थे! इनका विवाह पचीस वषं की अवस्था मे ह्या था । इनकी गरूभक्ति का हाल श्रपदास के वंन में मौजूद है । पित्र-भक्ति भी इनकी बहुत बदी चदी थी । पितृ-चरणां को वंदना किये बिना ये कोइ काम न करते थे । जब बहुत बीमार हो जाते ओर चलने-फिरते की शक्ति न रहती तब पिता की चरण-पाुका . अपने लेटने के स्थान में रखवा लेते ओर उनके दशंन मे पिता के दर्शन का: सौभाग्य प्राप्त करते थे । इनकी घ्राण-शक्ति का विकास भी अद्भुत बतलाया जाता है । कड इतर एक में सिलाकर सँघाने परये बतला. देते थे कि इसमें अयुक अमुक इतरो का संमिश्र स है ! इसी प्रकार क ङु के पानी की परीका को वाचत




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