पढ़ाने की कला | Padhane Ki Kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ~ अध्यापक ७ होते हैं । भ्रगर भ्राप उन्हे ठीक से पढाये तो झापका काम उनके दिमाग से बहुत से तथ्यों को भर देने से ही पूरा नही हो जाता । यह काम ५०० सी सी का एक टीका या साल भर के लिए भ्रावश्यक विटामिनों की मात्रा को एक ही सुई मे शरीर में डाल देने की तरह नहीं किया जा सकता । आप एक ऐसे दिमग को ढालने का काम करते हैं जो सजीव है कभी- कभी उस काम मे अवरोध भी पैदा होती है1 हो सकेता है कोई बच्चा हठी बन जाय भ्नौर प्रत्यक्षत किसी तरह की वात सीखने को तैयार न हो । कभी-कभी बच्चा किसी बात को वडी श्रासानी से ग्रहण कर लेता है म्रौर धीरे-धीरे फिर उसे भूलने लगता है मौर गद मे सब-कूछ पूर्णतया भूल जाता है । लेकिन अक्सर जैसे-जसे श्राप उसे शिक्षित करते हैँ वह दृढ बनता जाता है श्रौर जव श्राप उसे एक लायक झ्रादमी बनाने मे योग देते हैं तो ब्रापको श्रपू्व झानन्द मिलता है । किसी बच्चे को छपे हुए भ्रक्षरो मे सच और भूठ का बोघ कराना उसमें कविता और देशभक्ति के श्रर्थ को समभकतने की चेतना पैदा करना श्रौर भ्रपनी योग्यता श्रौर समभ से उसका श्राप ही पर वाक्य प्रहार करना आपको एक ऐसा सुख प्रदान करता है जो एक कलाकार श्रपनी तूलिका से रग भरकर किसी सादे पटल पर कोई नया चित्र बनाकर करता है या किसी डाक्टर को एक बीमार की सुधरती दशा पर होता ह जो उसकी देख-रेख मे नये जीवन का स्पदन भरता है । कुछ श्रघ्यापको को शायद यह्‌ अनुभव होता ही नहीं श्रौर अ्रगर होता है तो बहुत ही कम । इस तरह वे एक ऐसे लाभ से वचित रह जाते टँ जो पठने मे मिलता है श्रौर श्रपनी गरीबी की तरह पढ़ाने के काम को भी भाग्य का कठोर दण्ड समभने लगते हैं। उनकी यह शिकायत होती है कि लडके-लडकियाँ उनसे नफरत करते हैं श्रौर श्रक्सर वे भी उनसे घृणा करने लगते हैं। वर्षों बीत जाने पर उनकी यह नफरत सर्विज्ञ हो जाती है श्रौर उन दोनो के बीच ऐसी दीवार खडी कर देती है जो कभी भी नही हटती । मुझे याद श्राती है कि जब में प्राठ साल का था, उस समय मेरी क्लास मे फ्युरी नाम की एक लडकी थी जिसकी वहाँ बडी घाक थी । उसके क्लास मे घुसने से पहले ही हम लोग डर जाते थे। उस साल जो कूछ हमने वहाँ सीखा, उसमे निश्चय ही स्कूल, वडो भर घौंस से नफरत करना शामिल था । साथ ही शारीरिक क्रूरता की भयकर शक्ति का ममंस्पर्शी ज्ञान भी हुआ । दूसरी श्रोर श्रकेला अध्यापक सारी क्लास के विगडे हुए लडको जितना शैतान नही हो सक्ता जो अनुशासनहीन हो ्रौर जो वैकाबू हो गये हो । उसी क्लास मे, कछ वषं बाद मुके याद है, कि मैने एक ऐसा अध्यापक देखा जो स्वभाव से श्राक्रामक नही था। उसने युद्ध मे भाग लिया था म्नौर उसका रेकाडं अ्रच्छा था 1 लेकिन वह्‌ विद्याथियो को पढाते समय उनको हूरकतो से तग श्राकर क्रोध श्रौर क्षोभ के मारे उवल पडता था । सुरे यह भी याद है कि शहूर के स्कूल मे एक श्रध्यापिका ने मुभे बताया था कि उसके क्लास के भगडालू लडको का एक दूसरे को चाकू मारना उसकी सबसे वडी समस्या थी । यह्‌ स्वाभाविक ही है कि कोई विद्यार्थी अपने श्रघ्यापक का विरोध करे । यह एक म्रच्छा लक्षण है रौर दोनो के लिये उत्साह्वधेक हो सकता ह । कला की उक्तम कृतिर्या | ति ॥




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