सपाट चेहरे वाला आदमी | Sapat Chehare Wala Aadami
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रीष १५
वह निकलना मही चाहता था । जो भी हौ, वह् उचै कही छोड राया था । तब
बहु बहुत छोटा-सा था । कोमल और बिल्कुल भोला । वह सोचता था कि बह
रस्ता भूल भया होगा ओर लोटकर फिर नही झायेगा ।
लेकिन एक दिन वहू लीर श्राया । वहू दफतरते चौट रहा था कि भ्रचानेक
ही बह रास्ते म खडा, दिखाई दे गया । द्धोटा-सा, 'मबरे-भवरे वाल, छोटी-घीटी
मिचमिंची आष जिनमे कटी गहरी पहचान भौर उलाहने का माव था। कषरा
भर को बह रुक गया ग्रौर उसे देखता रहा । फिर वह तेज़ी थे मुडा और भीड
में बामिल हो गया 1 नहीं वह “उसे ' बुला नहीं सकता था । बहू उसे पुचकार नही
सकता था ! बह उसके संग भ्रपना थीडा-सा भी वर्वेत अर्वेले में गुज़्ारने लायक
नहीं रद गया था । सडक के उस झोर बहुत बडा मंदान था .. या कि रेशिस्तान ।
लोग कहते थे--धीरे-धीरे वह रेंगिस्तान शहर के अन्दर तक बढ़ता हुआ चलाभ्रा
रहा है । श्रधेरे मे सफेद, किरकिरी रेत उड़ कर घरों, सड़कों, मफानों, घोरस्तों
भर भ्राद्मियी पर बिछ जाती है भ्रौर सुवह् वहं हिस्सा वजर क भीतर चला जाता
है। उसने सोचा--वह उसी मरुभूमि मे लोट गया होगा, जहाँ वह उसे छोड़ आया
था | भीड के साथ-साथ श्रागे वंढते हए भी वह बार-वार पीछे मुडकर उस झोर
देखता रहा । उसे लुप्त होता हुभा देखता रहा । इसी मतस्थिति में वह घर लौटा
और चुपचाप जाकर अपने कमरे में लेट गया । वह वेयी झाया धां ? श्रचा्नक ही,
उस भीड-मरी सडक पर पहचान जताता हुमा, चह क्यों खड़ा था--इतने दिनो
वाद शायद लोग, उसे इस तरह उजबक की तरह संड होकर उसकी श्रोर देखते
हुए लक्ष्य कर रहे थे । क्या उनमे कोई परिचित भी था ? उसे वुछ भी याद नहीं
श्राया । वह् इतना परधिकं भिभूत हो गया था. उसके इष तरह् श्रप्रस्याधित खूप
से प्रकट हो जनि पर..-इतना अधिक डर गया था कि उसने श्ौर कुछ भी नहीं
देखा । तभी उसे श्रहसास हुआ कि वह भीड में है शरीर सडक के नियम के सिलाफ़
पौष, पुड् दूर शरोर देख न्ह है +
दूसरे-तीसरे दिन भी उस घास जगह पर एक बार नर दौढाना बह नहीं
भुला । लेकिन घह्टीं कुछ भी मही था । उस भर बहुत दूर क्ितिज में रेत का उड़ता
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