भारतीय आर्य भाषाओं का इतिहास | Bhartiya Arya Bhashao Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीश प्रसाद कौशिक - Jagdish Prasad Kaushik
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साहित्यिक एवं परिनिष्ठित अपभ्रंश के क्षेत्रीय भेदों को पुष्ट भाषा-वैज्ञानिक
आधार-भूमि पर निरस्त कर उसके एक ही रूप की स्थापना की गयी है ।
इसी बीच उसका ध्वन्यात्मक एवं रूपात्मक स्वरूप भी स्पष्ट किया गया है ।
सातनें अध्याय में 'अवहूट्ठं अथवा संक्रान्ति काल की भाषा पर विचार
किया गया है गौर यह दिखाने का प्रयास किया है कि वह साहित्यिक अपग्रंश
से कितनी दूर चली गयी थी और नव्य-भारतीय भायं भाषाभों के कितनी
समीप आ गयी थी । इसके साथ ही इसकी व्वन्यात्मक एवं रूपात्मके विणेप-
ताभो पर भी विचार किया गया है ।
आठवें अध्याय में नब्य-भारतीय आयें भापाओं पर विचार व्यक्त किये हूँ
भौर डॉ. प्रियसंन और डॉ. चादुर्ज्या के वर्गीकरणों पर विस्तार से विचार
भी । इसके पश्चात् समस्त नव्य-भारतीय आर्य भाषाओं का पृथक्-पृथक्
संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए इस अध्याय में मुख्यतः: नामकरण, क्षेत्र,
सीमाएँ और ध्वन्यात्मक तथा रूपात्मक चिशेपताएँं सन्निविष्ट की गयी हैं ।
नवें अध्याय में पश्चिमी हिन्दी के उद्भव और विकास पर विचार किया
गया है तथा अपगभ्रंश के साथ उसके सम्बन्ध को रपप्ट किया. गया है । इसके
पश्चात् हिन्दी शब्द कौ निरुक्ति तथा हिन्दी-उद् विवाद पर एतिहासिक दृष्टि
से विचार किया गया है ।
दसवें अध्याय मे हिन्दी (खडी वली) भाषा की ध्वनियों के स्वरूप
और उनके विकास की प्रक्रिया को विस्तार से स्पष्ट किया गया है 1
ग्यारहवे अध्याय में हिन्दी (खड़ी वोली) का रूपात्मक विकास प्रस्तुत
किया गया है) महामुनि यास्क के “नामाख्याते चोपसगंनिपाताश्च' के
आघार प्रर शब्द-रूपों का विभाजन कर प्रत्येक विवा को पृथक्-पृथक् रूप में
स्पष्ट किया गया ह ।
अन्तमेदो परिशिष्ट है जिनमे (१) हिन्दी राष्टू-मापा क्यों? त्तथा
(२) पारिभाषिक शब्दावली का विवेचन है । इस प्रकार संक्षेप में यह् प्रयास
किया गया है कि भाषा-विज्ञान के अध्ययेष्ण छात्र सरलता से भारतीय आर्य
भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर सकें । यह प्रयास कितना सफल हुआ है, यह
निर्घारित करना चिज्ञ पाठकों का अपना विषय है ।
मानव के जीवन-निर्माण में विभिन्न व्यक्तियों, घटनाओं एवं परिस्थितियों
का योगदान रहता है । मनुष्य उनसे प्रेरणाएँ ग्रहण करता है और तदनुरूप
अपने पथ का निर्धारण करता है। अतः इस दृष्टि से मैं कह सकता हूँ कि
भाषा-अध्ययन के इस पथ को प्रशस्त करने का श्रेय मेरे दो पितृव्य स्व.
पं. रामस्वरूप शर्सा और स्व. पं. कन्हैयालाल शर्मा को है जिनके सातन्रिध्य में
पैंने संस्कृत भाषा की पुरातन प्रणाली पर लघु और सिद्धान्त कौमुदी तथा
User Reviews
Akhil
at 2020-03-22 17:59:31"awesome"
Yagyesh
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at 2020-03-22 14:06:32"Highly knowledgeable. "
Sakshi
at 2020-03-22 13:51:02"Wonderful content"