भारत का आर्थिक विकास | Bharat Ka Aarthik Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{* पृष्ठ क्रम अध्याय ६ न क ११२-१३१ मारतीय तरकर नीति सन्‌ १६२१ के धूर्व, तटकर भायोग, विचेकारमक सरक्षण नीति का्यडप में, विवेात्मक सरक्षण नीति की भालोचना, सरक्षण नीति का मूस्याकन, द्वितीय विश्व-युद्ध एवं पुद्धोत्तर सरक्षण नीति, अस्थाई प्रधुरुक सभा की भानोचना, भारतीय तटकर झायोग सद्‌ १६४६-५०, माधिक उसवि को रूपरेखा, शायोग की अन्य सिफारिों, स्थायी प्रधुल्रु सभा, भाषोग के काये, जच के सिद्धान्त, वतमान सरक्षण नीति, पाही भधि- मान, विकास एव हनु, प्ियात्मक पहलू, मारत भरर पादो भ्रधिमान, वतमान स्पिति, प्रोटावा व्यापाद समता, प्रयुन्क सुविधाये भात करते समप, प्रुरक सुविधा्ये देने समय, वर्तें- मान नीति 1 न ए १३१-१३८ शौधोगिकश्चम श्रमिक वर्ग का विरास, श्रमिकों का वितरण, भारतीय श्रमिकों की विशेषताएं, भारतीय श्रमिकों की भशमता, कया भारतीय श्रमिक वास्तव में भ्रकुशल हैं, कां्यक्षमता दढ़ाने के लिए सुझाव । हक ० नम १३६-१४६ मारतीय श्रमिकों की ग्रह समस्या गृह समस्या का इस भावश्यर, ग्रद्द समस्या के हमें के प्रयत्न, सरकार की गुड़ निर्माण योजना, संसोधित योजना, कोयला खान एवं भय प्रौद्योगिक श्रमिवों के लिए, उपसंदार । श्रीयोगिक सम्पन्व--कलह और श्रमिक-संघ भौद्योगिक कलह, भौद्योगिक कपड़ों के कारण, भोद्योगिक शान्ति की व्यवस्था, स्वतन्प्र-भारत में, इण्टस्ट्रिल डिस्प्यूट्स मधिनियम सन्‌ १६४७४, मोद्योगिक कलह ( मोल घदालत ) श्रयिनियम सन्‌ १६५०, पंच-दर्पाय योजना में, शरमिों का प्रबन्ध में हिस्सा, थम संच, उददय, यमरस्य के लाभ, समिर वर्धो मे हानिया, सार में श्रम-पध-परन्दोदन, धम्‌ १४६-१९२




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