लोक अर्थशास्त्र एवं लोकवित्त | Lok Arth Shastra Evm LoKavitt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०५ क हो सकता क्योकि ऐसे पू जीगत लाभ जनसंध्या को लगातार वृद्धि तथा मौचयोगीकरण के दवाव के अन्तर्गत जमाबन्दी भूस्यो मे होने वाली निरन्तर वृद्धि के ही प्रठीक होते हैं । (४) शम्पत्ति के हस्तान्तरण पर प्रभाव (06० ० 17८ गऽ 0 एणन)-- पूजीगत लाभकर, विशेष रूप से तब जबकि इमे आरोहौ (शिण०्ा5519६) वना दिया जाता है, सम्पत्ति के हस्तास्तरण (03०5९) को प्रभावित कर सकता हैं और इस प्रकार शेयरों तथा बाॉग्डो की खरीद की दिशामेद्रव्य-पूंमी (70 व्यव) के प्रवाह की यति धीमी कर सक्ता है। इस तक का आशय यही है कि पूंजीगत लाभ कर मा तो लगाया ही न जाए, मौर यदि लगाया जाए तो कर की दरें वुलनारंमक दृष्टि से सीची हो | (५) विनियोजनों का घंघकर अयवा जमकर रह जाना (1फण्डध्यलाा6 पणा िए९य}--यह्‌ दावा क्रिया जाता है किं पूंजीगत लाभो प्र यदि नियमित समयान्तरो (णभ 19{61५३15} कै पप्चात्‌ उस समय करे लमापा गया जसकि पू जीपत्त लाभ उपलब्ध हो तो इससे विनियोग (पण्८ऽ{्ला15) अपने स्थान पर वधकर (0662९) रह जायेंगे क्योकि उस स्थिति में लोग अपनी पूंजीगत परिसम्पत्तियों को बेचने में इसलिए हिचकिचायेंगे कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन पर कर लग जायेगा । संयुक्त राज्य अमेरिका में तो इस सम्बन्ध में एक विशेष कामून में ऐसी व्यवस्था है कि पूजीगत लाभ उत्पन्न तो हो जायें किन्तु यदि वे उपलब्ध मृत्यु तरु भी न हो तो उन पर कभी कर नहीं लगता । इस व्यवस्था ने लोगो को, विशेषकर बूढ़े लोगों को, चालू बिनियोगों को ही बनाये रखने के सम्बन्ध में बढ़ा तीव्र एव अनावश्यक प्रोत्साहन दिया है। इसे सामान्यत. “तालावन्द समस्या को सज्ञा दी जाती है । (६) अशो के भ्रय को हतोत्साहित करना (71500ण२९०७ एषणलैऽल णा थल)-- एूजोगत्‌ लार्भो पर्‌ लगाये गये ऊॐवै कर सामान्य अशे (०पप०प 8८७) की खरीद को हतोत्सादिति कस्ते है धौर इस प्रकार सामान्य अश पूजी (व्वृणा चव) के प्रभाव कौ अवर्द्ध करते हैं । इस सम्बन्ध में ऊपर पल ही प्रकाश डाला जा 'ुका है । पूजीगत लाभी पर कर लगाये जाने के विरुद्ध जो तीन अन्तिम तर्क दिये गये है वे बत्यत्त शंकास्पद हैं । उदाहरण के लिए, यह कहा जाता है कि विनियोग के अपने स्थान पर ही व धकर रह जाने को समस्या अपवा 'तालादन्दी की समरया' इसलिए उत्पन्न नहीं होती बयोकि पू्जीगत लाभों पर कर लगाये जाते हैं जबकि वे बसूल होते हैं । यदि इन लामो पर उत्पन्न होने के आधार पर कर लगाये जायें तो पू'जीगत परिसम्पत्ति के विक्रय तथा हस्तात्तरण पर उससे कोई रोक नहीं लगेगी । इसके अतिरिक्त, एक बात यह है कि ये तर्क स्वयं पूजीगत लाभ कर के विरुद्ध नही हैं, अपितु ये तो इस कर की अपेक्षाइत नीची दरों की वकातत करते हैं । (७) कर परिहार को प्रोत्साहन (500 का! 36 87. 8४०ठ20८6)--पूजीगत लाभ के कराधान का विरोध इस विचित्र आधार पर दियां जाता है कि इसकी लागू करने से कर-परिहार (चवर 2४0168८2} कम नही होगा अपितु उसको दौर प्रोत्साहन मिलेगा । इस प्रकार का तर्क भारत फं) कराघान जौ सममिति {णप पपा (एप्पल) ठः (तु दया गया है। इस समिति के अनुसार, “पदि अब पूंजीगत लाभो को लागू क्या गया' “तो इससे कर- थरिहार का खतरा उत्पन्न होगा क्योकि इस स्थिति मे लोग उन आमदतियो कौ भी पूृजीपरत लाभो के रुप में हटा देने के प्रयलनों के लिये प्रेरित होगे जो कि अन्य स्थिति में कर-योग्य बाय (धवल 10076} करा ही एक भाग समन्ञौ नाती ४ जं्ाकि कल्डोर ने कहा है कि “उपयुक्त विचार में इस तथ्य की उपेक्षा कर दी गई है कि पूजीगत लाभी को पूर्णतया बर-सुक्त कर देने र तो निश्चय ही कर्पर को अपेक्षाकृत सधक तत्र प्रोत्साहन मिलेगा भमु उसके कि भेद पलक न. डक ० पिंड दउदद 000 िप्रयुषाएक (णतप, ४० 1, 9. 163, पा लदवा हउ 05 फटा (0 | ४6 [प(०वपटल्ते 0० #ण्दाट 15 2 दग्धा ० १३५ 2४91428 एर ३१५०४५१६६८त ए» 26८६ ६७ १२७६ ०९ 25 ०२९।८३॥ &3105 ४०३६ 0 0योष्थ 156 03४6 ६६० ८3८0 83. एस णा एवा ००0०६५१




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