भारत का आर्थिक विकास | Bharat Ka Aarthik Vikas
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
568
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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महासागर तथा दक्षिणपूर्वं व दक्षिण-पश्चिम मे मरा बंगाल कौ खादी एवं अरब सागर के आने
से भारत को अनेक प्राकृतिक वन्दरगाह प्राप्त हो गए है, जिनसे विदेशी व्यापार मे अत्यधिक सहायता
मिलती है । पूर्वी तथा पश्चिमी मार्गों से भारत विश्व के सभी देशो से समुद्री यातायात की व्यवस्था
कर सकता है ।
भारत की स्थिति ८४” अक्षाश्य से ३७१६ अक्षाश तक होने के कारण यहाँ अनैक प्रकार
को जलवायु मिलती है । जिसके कारण यहाँ सभी प्रकार की फसलें उत्पन्न की जा सकती है ।
भौगोलिक खंड
भारत को मुख्यत चार भौगोलिक खण्डो मे वाटा जाता है--
है, हिमालय का पर्वतीय क्षेत्र-इस क्षेत्र मे भारत के उत्तरी भाग मे स्थित वह पर्वतीय
प्रदेश सम्मिलित है जो उत्तर में पामीर के पठार से लेकर पूर्व मे आसाम की सीमा तक फना हुआ
है । हिमालय पर्व॑त माला को तीन श्र णिदो में विभक्त किया जा सकता है; मुख्य हिमालय, हिमालय
की उत्तरी पदिचिमी शाखा तथा हिमालय की दक्षिण-पुर्वी शाखा । यह विभाजन पर्वत माजा की
विभिन्न क्षेत्रों की ऊंचाई के आधार पर किया गया है । विश्व की सवसे ऊँची पर्वेत-मालापं जसे
एवरेस्ट, कंचनचंगा, धवलगिरी आदि मुख्य हिमालय के अन्तर्गत ही आती है । मुख्य हिमालय से
गगा, ब्रहापुन्र, सिंधु तथा अनेके बडी नदियां निकलती है, जो इस प्रदेश के दक्षिण मे स्थिते मैदानो
को जलल प्रदान करती है ।
भारत के आर्थिक विकास मे हिमालय का सर्वाधिक योगदान रहा है । इमे निकलने
वाली नदियां स्थायी (एलल्णा12]) है वयोकि हिमालय पर जमी वफ हिम-नदियो के रूप मे पिवल-
पिघलकर नदियों मे निरन्तर पानी देती रहती है। इसमे वपं-मर गंगा-सिधु के मैदानो मे छृषि-ैतु
पर्याप्त जल मिलता रहता है । यहीं नही, उत्तरी भारत के प्रदेशों में पर्याप्त वर्पा होने का कारण
भी हिमालय की स्थिति ही है, क्योकि थे पर्वत-मालाएँ वर्षा की हवाओ को उत्तर की ओर जाने से
रोकती है । उत्तरी भारत के प्रदेशो मुम्यतः पजाव, उत्तर प्रदेश, बिहार व बगाल के हरे-भरे, खेती
की रक्षा भी हिमालय एक प्रहरो कौ भाति करता है वथोकि हिमालय एक अभेद्य दीवार की भाति
उत्तर की सूखी एवे दण्डी हवाओ को आने से रोकता है । हिमालय कै जंगलो मे भूल्यवान लकड़ी
व अन्य उपयोगी वस्तुएं उपलब्ध होती है ।
हिंभालय के निचले पहाड़ी ढाली पर चाथ की खेती होती है जिससे भारत को पर्याप्त
विदेशी विनिमय प्राप्त होता है। सर जोशिया स्टेप ने ठीक ही कहा है कि भारतीय कृषि (विशेष
रूप से उत्तरी प्रदेश में) की प्रगति की मुख्य उत्तरदायित्व हिमालय पर ही है 11
२. गंगा ओर सिन्धु का मेदान-- हिमालय की पवंतमालाभओ से दक्षिण मे स्थित, विश्व
के सबसे मधिक उपजाऊ मैदानी मे एक, गंगा-सिन्धु का मँदान है । पाकिस्तान के अतग हो जाते के
बाद इस मैदान की लम्बाई लगभग १४०० मील रहू गई है तथा चौदाई लगभग र०० मील है ।
इस मैदान की मिट्ठो दोमट मिट्टी कहलाती है, जो अत्यधिक उपजाऊ है ओर गगा, यमुना, गडक,
घाघरा, कोसी तथा ब्रह्मापुब नदियों के कारण इस मंदान में कृषि के लिए पर्याप्त जन प्राप्त हो
जाता है। अत्यन्त विज्ञाल होते के कारण इस मंदान मे विभिन्न प्रकार को जलवायु पाई जाती है,
इसीलिए गेहूँ, चावल, गन्ना, जूट, चाय और विविध प्रकार की फसले वैदा होती है । समतस होने
के कारण इस मैदानमे रेनौ, नहरो व सडको का जाल विदा हुआ है । अत्यन्त प्राचीन काल से
ही यह् मैदान कृषि, दस्तकारियो तथा घनौ जनसंख्या के लिए प्रसिद्ध रहा है । इतिहास के जानकार
सिन्धु-घाटी को सभ्यता का उदाहरण इती मंदान की पुरातन सभ्यता के रूप मे प्रस्तुत करते है ।
१६४७ कै वाद देश का विभाजन हो जाने के कारण सिन्ध तथा उसकी सहायक नदियाँ
पार्किस्तान मे चली गई और इसलिए इस मैदान के महत्व पर काफी प्रभाव पड़ा ।
३ दक्षिण का पठार--गगा-सिन्धेके मैदान से दक्षिण में यह पठार या प्रायद्वीप स्थित
है । इसे प्रायदीपीय पठार भी कहा जाता है । समुद्र के किनारे-किनारे यह दक्षिण तक चला गया है 1
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