श्री राधा क्रम विकास दर्शन और साहित्य में | Shri Radha Ka Kram Vikash Darshan Aur Sahitya Men
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे
= के लिए, कल्याण के मंही संग्राम करती हैँ; में ही
के लिए (रसा के लिए, कल्याण कैः लिए) महा नभ्रान करता द; मरू
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व्यात किए हुए हूं; उन चुनोक को थी मन हा ढंह से स्पण कर र्कला
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झलोक के भी परे हूँ, में पृथ्वी के भी परे हूँ--यहीं मेरी महिना है ।
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यहाँ च्राच्य-स्स्प परत्रह्म कौ ही महिमा उद्गीत हुई है,--वहीं
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सर्वभूतों में विराजमान
रहकर सबका धारण श्रौर संचालन कर रहे हं ।
जहाँ जो कुछ हो रहा
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है, जहाँ जो कोई भी जो कुछ कर रहा है--यहं
ना म्नौर करना क्रिया के मूल मे उन्ही की एक सवरेव्यापिनी गकि
ह । वे सर्वगक्तिमान् हु--उस्त सत्रेणव्त्तिमान् की त्रनन्त चक्ति ही सारौ
क्रियान्नो का मूल कारण है, सारे लानो क्रा मूल कारण है; यह इच्छा-ज्ञान-
क्रियात्मिका है । विष्वव्यापिनी थक्ति ही तो देवी ह--वहीं महामाया हे ।
यहाँ श्रात्मा के महिमाख्यापन के उपलब्य में ब्रह्म का महिमाख्यापन श्रौर
ब्रह्म के महिमास्यापन के अन्दर से मानों ब्रह्मणक्ति की ही महिमा कीरतित
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टट टे । गव्त्तिमान् अ्रौर यक्त अभेद है, तथापि ज्रह्म के महिमाख्यापन
लिए ही मानों ब्रह्मणक्ति को ही प्रघान दिखाया गया है । यह जो
गदित
1 ९ कर्क
शरीर यत्रितमान् के मून ग्रभेदत्व के वावजूद श्रमेद मे मेद की कल्पना
थक्ति की महिमा प्रकट की गई है, यही भारतीय दार्णनिक धक्ति-
वाद का बीज है । भगवान की श्रनन्तथवित सभी देगो, समी कालो, समी
यास्त्रों में मानी श्रौर गाई गई है, लेकिन उस थक्ति को गक्तिमान् ते
भ्रलग करके उसमें एक स्वतन्त्र सत्ता और महिमा का श्रारोप करके अपनी
महिमा मे यक्ति की ही प्रतिष्ठा करना--ग्ही भारतीय बवितिवाद का
झभिनवत्व है । इस घक्तिवाद में भारत के जितने धर्ममतो मे जिस प्रकार
से भी प्रवल क्रिया है सभी जगह यह अमेद मे भेद बुद्धि का मूलतत्त्व
वर्तमान हू । उपर्युवत्त वैदिक सूक्त मे गवितमान् म्रौर घवि्ति एकदम अविना
स्पतसे वद् है, लेकिन यहाँ जो एक 'दो' की सुदम करपना की व्यजना है
परवर्ती काल मे विविध यर्मों मे धर्म-विथ्वास श्र दार्गनिक तत्त्व
१
०१
) श्रं द्ेनिचदुभिक्चरामि श्रादि।! (१०।१२५।१-र)
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