श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 5 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 5

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 5 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराज परीक्षितू को शाप १३ इस पर सूतजी बाले-“महामाग ! यह सत्य है, शमीक सुनि परम तेजस्वी श्नौर सवंसमथं थे । उन त्रिकालदर्शी मुनि ने फिर ध्यान लगाकर देखा, तो उन्दं पता चला, राजा की मृत्यु इसी प्रकार तक्षक के द्वारा होनी ही हैं, ऐसी भावी ही है, वे इविधि के विधान को अन्यथा करना नहीं चाहते थे । भावी को वे व्यर्थं मानने बलि ये) अतः उन्होंने शाप को तो झन्यथा नहीं किया । उसी समय 'श्रपने एक सर्वसमर्थ शिप्य को बुलाकर कहा - बेटा ! तुम अभी'योगमार्ग से हस्तिनापुर जाझी और उन धघर्मीस्म! राज्ञा को इस बात की सूचना दे दो, कि मेरे पुच्न ने लड़कपन के कारण श्रापकों ऐसा शनुचित शाप दे दिया है, झाज के दिन को छोड़कर सातवें दिन झापकों तक्षक डसेगा। -इन सात दिनों में श्राप जो भी अच्छे-से-अच्छा, श्रेप्ठ-से-श्रेप्ठ -कायं कर सके करे । हमारा हृदय से श्रापको श्राशीवीद है । प्राप भगवान्‌ के परम भक्त है, प्रतः सपेकेकाटनेसे मृत्यु होनेपर -भो आपको दुर्गति न होगो | श्चाप भगवान्‌ के श्रमन्त वैकरट धाम को पारगे 1 इस प्रकार शिष्य को संदेश देकर शमीक सुनि ने उसे तुरन्त म्मेजा। शिष्य भो श्रस्यन्त शोघर झाकाश मांगें से हस्तिनापुर की ओर चल दिया |”? छप्पय इर्यो पठि उर स्वाद शाप हीं देहीं वाकू । डते स्रवे दिवस ,महां. अहि तक्नक ताँकू ॥ यों देकं पुत साप पञ्च पितुके ढियश्रायो। मर्यो स्व उर तिरलि, बहुत्त रोयो विल्लायौ | जगे महामुनि सुरी सब, बात बहुत इख मन कृध्यो | उिक्फारयो प्त विनिष विधि, चुप सन उत्त ठै दियो ॥




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