श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 93 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 93

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 93 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( (7१९८) “बाद देखे भी नहीं थे । वहाँ एक से ण्क घुरंघर, एक से एक “विद्या श्रौर प्रथम श्रेणी का जीवन बिताने वाले थे । हम तो द्रव स्था में छोटे, फिर हंसों में काक सदश। फिर साधु वेप 1 हमे श्पनो मयोदा कामी ध्यान था । ्तः ऐसे किसी कगड़े भंकट में नहीं पडते । चुपचाप दूर रदकर इन नाटकों को देखते ग्हते । व्झगरेजी के विद्वानों के अतिरिक्त वहाँ साघु संन्यासी भी थे 1 वर- हज के परमहदस श्री चावा राघवदास जी वड़े सरल शान्त सबसे प्रथक रहते । णक स्वामी व्रह्मानन्दजी भारती थे } पहिले कभी नामा से सुधिक थे । योलचाल रहन सहन सव सियो जैसा लोग चिदाने का न्दे देवीजो कहते । एक शद्कुसाचायजी के शिष्य स्वामी सास्क्ररामन्द तीर्थ ये, उनका क्या कना पूरे अग्निशमा ही थे । स्वामी सद्दजानन्द जी बड़े प्रसिद्ध नेता थे हमारे यहाँ के स्वामी योगानन्द जी यति शान्त प्रकृति के ये ! एक स्वामी वासुदेवाश्रम भीयेश्रौर भो कर बैरागी वैश्णव तथा अन्य धार्मिक व्यक्ति थे । पूरा जमघट था | सभी श्रेणी के थे प्रेम की सीमा नहीं थी श्रौर मगडा टंटो भी असीम होता था । कभी-कभी तो लोग इतने भी नीचे स्तर पर उतर आते थे, कि देखकर शश्चयें होता था, कि इतने बड़े ्ादमी ऐसी हलकी बात भी कह सकते हैं क्या ? जीव का स्वभाव होता है वदं प्यार क्रिये मिना भी नदीं रह सकता श्रीर्‌ लड़ाई कगडा किये बिना भी नहीं रह सकता | बाहर तो बात उकी-मुदी रहती है । फगडा करते की इन्छा हुई तो घर में स्तर बच्चा से, नौकरो से भ्डा कर लिया | प्यार करने को अपना लद्का लडकी, पत्नी समे सम्बन्धी टै ही । कन्तु यदो कारावास मतो सव खुन्नमखुल्ना करना पड़ता ह । प्यार भी साथियों से ही किया जाता हे और लडाई भी उन्हीं से करनी पढ़ती हैं । जैव घर्म डै। जीव इसके बिना रद्द नहीं सकता इसमें दोप किसी का नहीं । क +)




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