तार सप्तक | Taar Saptak

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Taar Saptak by गजानन माधव मुक्तिबोध - Gajanan Madhav Muktibodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि अंपनी उण्णता से धो चले अविवेक तूहै मरण तू है रिक्त तू है व्यर्थ तेरा ध्वस केवल एक तेरा अर्थ । १० नाश देवता घोर घनुघर बाण तुम्हारा सब प्रा्णों को पार करेगा तेरी प्रत्यचा का कपन सूनेपन का सार हरेगा । हिमवत्‌ जढ़ नि स्पन्द हृदय के अन्घकार में जीवन-भय है । तेरे तीक्षण बाण की नोकीं पर जीवन-सचार करेगा 1 तेरे क्रुद्द वचन बाणों की कर गति से अन्तर में उतरेंगे तेरे क्लुव्घ हृदय के शोले उर की पीढ़ा में ठहरेंगे । कोपित तेरा अधर-सरफुरण उा में होगा जीवन-वेदन रुप्ट दंगों की चमक बनेगी आत्म-ज्योति की किरण सचेतन । सभी उरों के अन्धकार में एक तड़ितू बेदना उठेसी तभी सजन की हित जड़ावरण वी सही फटेगी । शत-शत बाणो से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अछुर दु्न की चेतन किरणों के ह्वासा काली अमा हटेगी । हे रहस्यमय ्वस महाप्रभु - जो जीवन के तेज सनातन तेरे से जीवन तीक्ष्ण बाण से नूतन सजेन । हम घुटने पर नाश-देवत वेठ तुझे करते है वन्दन गजानन मुक्तिवोध मेरे सिरपर एक पेर रख नाप तीन जग दू असीम चन । ११ सुजन-क्षण जो कि तुम्हारे गत बने हैं उनपर लहराकर भरता में एक अवज्ञा । चद्दी गभीर अतल होते है वेद्दी सदा अमल होते है फिर जाती जिनपर वन्या-सी मेरी प्रज्ञा । जबकि स्वय में सुज्ञ बना हू अन्नोका अन्तर पाकर ही सदा रहूं उनका चाकर ही वे कि जिन्होंने आत्मरक्त से मुमको सीचा । केसे हँस सकता हूं में उन पर ही । उनकी मर्यादाएँं पाकर दरिया अमर्याद लहराया अपने स्व॒रमें स्वरातीत गीता दुलराता मेंने अरे उसीको पाया । वे अपूर्णताए ईंर्प्याएँं सुकमे घुलकर घुलुकर वनतीं सु सनातन यह छिछलापन लघु अन्तर का क्षण-क्षण नूतन को करता है शीघ्र पुरातन। यों नूतन की विजय चिरन्तन महामरण पर सहाजन्म का उदय श्िप्तर महा भयकर से बहता है परम झुभकर । जो खण्ट्ति औ भम रहें हैं वे अखण्ठ देवता उन्हीके मुकमे आकर मम हुए हैं । ये आँसू ये चिन्ताके क्षण मुकमे आकर पा परिवर्तन जगके सम्सुख नस हुए हैं । औओ रे भग्न नग्न मलिनेकि खण्डित उम्र विकलके सागर भो छुह्प वीभत्स सनातन-- की प्रतिनिधि ध्रतिभाके आगर अरे अशिव चौने मस्तक के चिरविद्ठू प स्वप्न आत्मान्तक १७




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