श्रीरामगीता | Shriramgita
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चिकित्सालयों में नियुक्त किया । साथ ही श्रायुवैंदिक शास्र की
उन्नति के लिये ापने एक “ विजय श्रायुवेंदिक झोषघालय ”
एक स्वदेशी वैय हारा स्थापित कराया । झापका प्रेम एकदेशीय
नथा किन्तु सावमौमिक था । यह तो झवरय दी है. कि
४ 0७०संछ षा ० ४००९ परन्तु साथ मै यह् मी है कि 7094
,५०९९.१०४ धनर” ज्ञाप स्वदेशी राज्य के लिये श्र स्वदेशी प्रजा
के लिये बहुत कुछ करते थे ; पर साथ ही श्रवसर श्रनि पर
विदेशी छात्रों की भी सहायता करते थे । श्रतएव कई विदेशी `
छात्रों को जिनसे कोई सम्बन्ध या परिचय न था, छात्र-दूत्ति
श्र झनेक॑ संस्थाओं को 'चन्दा दिया करते ये। झवघ म्रान्त `
झन्तर्गत ख़ैरी में श्रापके सुनाम से “ विजय डिस्पेन्सरी ”
युनानी चिकित्सालय स्थापित हुआ जिसमें श्राप स० २००]
धार्षिक चन्दा दिया करते थे । कभी कोई ऐसा समय न गया,
कि किसी संस्था या व्यक्ति ने श्रापसे याचना की हो श्ौर
उसे बिमुख जाना पड़ा हो । इस थोड़े से झापके ८-१० साल के
खतन्तर शासन काल मे आपने लगमग रु० ४१७७०) घार्मिक
` क्यौ मे व वनो की सहायता मे भदान किये श्रौर न्य
“ -संस्थाश्नं को य° ५४७२८] भदान कयि ।
राजानो के लिये यह आवश्यक द, कि ८ किती घम्म से
हेष न रक्तै » राश्य मे अनेक मतावलम्बी जन निवास कते है ।
झतएव उनके घर्म्म से सददालुभूति रखना राज्यपर्स्म के मुख्य झंगों
मेंसे एक अंग है। आप मोइम्मदी घर्म्म का भी झादर करते ये]
जैनियों के उतवों मे मी सम्मिक्लित होते ये श्रौर श्रीमान् के जेव
. खर्च से सहायता पानेवाललो म समी धम्मो के ज्यक्ति सम्मिक्ित थे |
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